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उदासीनाचार्य श्री श्रीचन्द्रजी की मार्मिक कथा
उदासीनाचार्य श्री श्रीचन्द्रजी की अधबुत कहानी - Full Story of उदासीनाचार्य श्री श्रीचन्द्रजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [उदासीनाचार्य श्री श्रीचन्द्रजी ]- भक्तमाल


उदासीन सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री श्रीचन्द्रजी महाराजका जन्म सं0 1551 भाद्रपद शु0 9 को तलवंडी नामक गाँवमें, जो लाहौरसे तीस कोस पश्चिम है तथा आजकल जिसको जानकाना साहिब कहते हैं, क्षत्रियकुलभूषण श्रीनानकदेवजीकी धर्मपत्नी श्रीसुलक्षणादेवीके गर्भसे हुआ था।

जिस समय आप इस पृथ्वीतलपर प्रकट हुए, उसी समय आपका शिशु शरीर जटा भस्मादिसे विभूषित था और ज्यों-ज्यों वह बड़ा हुआ, त्यों-त्यों आपने जो एक से एक अद्भुत कार्य किये, उनको देख-सुनकर लोगोंको यह पक्का विश्वास हो गया कि आप कोई अलौकिक महापुरुष हैं तथा विषयान्ध जीवोंके उद्धारार्थ ही पधारे हैं। यथासमय आपका यज्ञोपवीत-संस्कार सम्पन्न हो गया और आप विद्याध्ययनके लिये कश्मीर भेज दिये गये। यहाँ आपने अल्पकालमें ही वेद वेदाङ्गोंका विधिवत् अध्ययन कर लिया और जब आप ब्रह्मचर्याश्रमका पालन करते हुए सकल शास्त्र-निष्णात हो गये, तब सं0 1575 की आषाढ़ी पूर्णिमाको कश्मीरमें ही आपने सद्गुरु स्वामी श्री अविनाशिरामजीसे उदासीन सम्प्रदायानुसार दीक्षा ले ली। तत्पश्चात् कुछ दिनोंतक गुरुदेवकी ही सेवामें रहकर आप उनके उपदेशामृतका पान करते रहे। जब आपने धर्मोद्धारका समय देखा, तब भारतभ्रमणके लिये निकल पड़े। उत्तर भारतसे लेकर दक्षिण भारतके प्रायः समस्त तीर्थोका आपने परिभ्रमण किया और अपने उपदेशोंद्वारा धार्मिक जगत्में एक नवीन जागृति फैला दी। फिर अन्य स्थानोंमें भी जा-जाकर आपने कितने पाप परायण जीवोंका उद्धार किया, इसकी कोई गणना नहीं की जा सकती।

कुछ समयके अनन्तर आप फिर कश्मीरकी ओर चले गये और वहाँ जाकर आपने वेद भाष्योंकी रचना की। तत्पश्चात् आपका पदार्पण पेशावर तथा काबुलकी ओर हुआ। उधरके यत्किञ्चित् हिंदुओंका जीवन विधर्मियोंकेदबावसे संकटमय था, अतः आपने कई स्थानोंपर अपनी योगशक्तिके प्रभावसे हिन्दुओंकी रक्षा की। जहाँ-जहाँ आपने हिंदुओंकी रक्षा की वहाँ-वहाँपर प्रायः अवतक आपके स्मारक बने हैं। उसी समय सिन्धके हिंदुऑपर भी यवनोंका बड़ा भारी अत्याचार हो रहा था। यहाँक ठट्ठा नामक नगरमें यह स्थिति थी कि हिंदू अपने मन्दिरोंमें आरती करते समय यवनोंके भयसे घण्टा शङ्ख भी नहीं बजा पाते थे और खुलेआम पाठ-पूजा तो बंद थी ही यह सुनकर आप शीघ्र ही वहाँ पहुँचे और अपने योगबलसे वहाँके शासकको परास्त करके आपने हिंदुओंको धार्मिक स्वतन्त्रता दिलायी। इसी प्रकार आपने जहाँगीर बादशाहको भी एक बार अपने योगबलका परिचय देकर प्रभावित किया था। और काबुलके वजीरखाँ नामक मुसलमानपर तो आपकी योगशक्तिका प्रभाव जादूकी तरह पड़ा था। वह आपके उपदेशोंके प्रभावसे भगवान् श्रीकृष्णका अनन्य भक्त बन गया और 'हे कृष्ण विष्णो मधुकैटभारे' की ध्वनि लगाने लगा। तात्पर्य यह कि आपने लोकहित के लिये असंख्य चमत्कारपूर्ण कार्य किये। स्थानाभावके कारण यहाँ उनका वर्णन नहीं दिया जा सकता और न आपके बहुमूल्य उपदेश ही यहाँ दिये जा सकते हैं। जिन्हें आपके जीवनकी अनन्त घटनाओं तथा आपके दिव्य उपदेशोंको जानना हो, उन्हें श्रीचन्द्रप्रकाश, उदासीनधर्मरत्नाकर, उदासीनमञ्जरी प्रभृति ग्रन्थोंका अवलोकन करना चाहिये। उदासीन सम्प्रदायके प्रचारद्वारा सनातन धर्मकी विजय पताका फहराते हुए आप 150 वर्षोंतक इस धराधामपर विद्यमान रहे। जब आपके निर्वाणका अवसर आया, तब आप चम्बाकी पार्वत्य गुफाओंमें जाकर तिरोहित हो गये। इसी कारण आपकी निर्वाण तिथिका ठीक-ठीक पता नहीं चलता। उट्टा, बारहठ श्रीनगर, कन्धार और पेशावर-ये पाँच आपके मुख्य निवास-स्थान थे। आपके बाद आपके अनेकों शिष्य भी बड़े-बड़े हे सिद्ध महात्मा हुए और उन्होंने भी विश्वका बड़ा हित किया।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [udaaseenaachaary shree shreechandrajee]- Bhaktmaal


udaaseen sampradaay ke pravartak shree shreechandrajee mahaaraajaka janm san0 1551 bhaadrapad shu0 9 ko talavandee naamak gaanvamen, jo laahaurase tees kos pashchim hai tatha aajakal jisako jaanakaana saahib kahate hain, kshatriyakulabhooshan shreenaanakadevajeekee dharmapatnee shreesulakshanaadeveeke garbhase hua thaa.

jis samay aap is prithveetalapar prakat hue, usee samay aapaka shishu shareer jata bhasmaadise vibhooshit tha aur jyon-jyon vah bada़a hua, tyon-tyon aapane jo ek se ek adbhut kaary kiye, unako dekha-sunakar logonko yah pakka vishvaas ho gaya ki aap koee alaukik mahaapurush hain tatha vishayaandh jeevonke uddhaaraarth hee padhaare hain. yathaasamay aapaka yajnopaveeta-sanskaar sampann ho gaya aur aap vidyaadhyayanake liye kashmeer bhej diye gaye. yahaan aapane alpakaalamen hee ved vedaangonka vidhivat adhyayan kar liya aur jab aap brahmacharyaashramaka paalan karate hue sakal shaastra-nishnaat ho gaye, tab san0 1575 kee aashaaढ़ee poornimaako kashmeeramen hee aapane sadguru svaamee shree avinaashiraamajeese udaaseen sampradaayaanusaar deeksha le lee. tatpashchaat kuchh dinontak gurudevakee hee sevaamen rahakar aap unake upadeshaamritaka paan karate rahe. jab aapane dharmoddhaaraka samay dekha, tab bhaaratabhramanake liye nikal pada़e. uttar bhaaratase lekar dakshin bhaaratake praayah samast teerthoka aapane paribhraman kiya aur apane upadeshondvaara dhaarmik jagatmen ek naveen jaagriti phaila dee. phir any sthaanonmen bhee jaa-jaakar aapane kitane paap paraayan jeevonka uddhaar kiya, isakee koee ganana naheen kee ja sakatee.

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