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कच्छके महान् भक्त दादा मेकण की मार्मिक कथा
कच्छके महान् भक्त दादा मेकण की अधबुत कहानी - Full Story of कच्छके महान् भक्त दादा मेकण (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [कच्छके महान् भक्त दादा मेकण]- भक्तमाल


दादा मेकण जातिके राजपूत और गुरु कापड़ी गणराजाके शिष्य थे। कच्छके छोरपर सिन्ध-गांग पार करके रास्तेपर भ्रंग लाडोई नामक गाँवमें उन्होंने अपना सारा जीवन बिताया। इनके पिताका नाम हरध्रोलजी और माताका नाम पबांबा था। उनके पास लालाराम नामका एक गधा और मोतीराम नामका एक कुत्ता था। मेकण साधु गधेकी पीठपर पानीकी छोड़ डालते और दोनों बगलके खनोंमें दो ठंडे पानीके भरे मटके डाल लेते और सिरपर एक खाली डबला लेकर गधे और कुत्तेके साथ कच्छ के रनकी ओर निकल जाते। इस प्रकार ये चार पैरवाले पशु चारों पहर रनमें फिरते। रास्तेमें प्यासे मुसाफिरोंको पानी पिलाते और रास्ता भूले हुओंको वे प्राणी मार्ग बताते थे। जब पानी खतम हो जाता, तब वे दोनों पशु वापस लौट आते। जंगलके चीते-जैसे जंगली जानवर भी इन दोनों पशुओंसे दूर रहते थे। रास्तेके किनारे मेकणका स्थान कच्छ और सिन्धके मुसाफिरोंके लिये एक खास मुसाफिरखाना बन गया था। हजारों मुसाफिरोंके लिये वे काँवर भरकर रोटी लाते, उनको खिलाते और ठंडा पानी पिलाते थे और थके लोगोंको वहाँ विश्राम मिलता था।

महात्मा मेकणने एक-एक धूनीपर बारह बारह वर्ष तपश्चर्या की । अन्तमें तपोबलसे वे बड़े भारी भक्त हो गये। ख्याति खूब बढ़ी प्रशंसा सुनकर दूर-दूरसे संत महात्मा और मुमुक्षु सत्सङ्ग करनेके लिये आने लगे। उनके जीवनमें चमत्कार भी खूब हुए। ध्रंगमें मठस्थापना करके वे जनताको और अपने शिष्योंको सदुपदेश देने लगे।

महात्मा मेकणकी शिष्य-मण्डली मेकापंथी कापड़ी कहलाती है। साधुसमाजमें कापड़ियोंके दो पंथ हैं। आशापुरी मठके साधु अपनेको कापड़ी कहते हैं और मेकणका शिष्यसम्प्रदाय अपनेको मेकापंथी कापड़ी कहता है। मेकापंथी मठके महंत त्यागी होते हैं, गृहस्थोंको शिष्य बनाते हैं। आशापुरी मठके कापड़ी माता जगदम्बाके पुजारी और शाक्त होते हैं।

कच्छके राजा एक दिन शिकारके लिये निकले। दादा मेकणकी प्रशंसा सुनकर उनके दर्शनको गये। साधुने अतिथिको देखकर सत्कार किया, बैठनेके लिये आसन दिया। राजाके देहपर चमकीली राजसी पोशाक मेकणके मनपर कुछ असर न कर सकी। राजाने कहा- 'दादाजी ! कुछ माँगो कहो तो राज्यसे रुपये भिजवा दूँ।' मेकणने जबाब दिया- 'राजा! रुपये-रुपये क्या कर रहे हो। वह तो मायाकी वस्तु है। मर जानेपर तो मुँहमें धूल ही पड़नेवाली है। कुछ चले गये और कुछ चले जायँगे। किस लिये जुल्म करते हो। मैंने तो शहरों-के-शहर मनुष्यके बिना सूने पड़े देखे हैं।' राजाने कहा-' - 'मुझे कुछ उपदेश दीजिये।' भक्तने जबाब दिया- 'राजा! ज्ञानरूपी मोती जैसे-तैसेको नहीं मिल सकता। सच्चा ग्राहक मिलनेपर ही हृदयरूपी हाट खुलनी चाहिये।' राजाने कहा- 'तब मेरी कुछ विनती ही स्वीकार कीजिये।' भक्तने कहा- 'राजा! तुमसे एक ही चीज माँगनी है कि यहाँ मेरी कुटियाके आस-पास शिकार न खेलो। आजसे ही यहाँ आस-पास शिकार खेलनेकी मनाही है।

संत मेकण महान त्यागी थे। उन्होंने कभी किसी वस्तुका सय नहीं किया जो मिला उससे लोगों की सेवा की। सं0 1786 के आश्विन वदी चतुर्दशीको उन्होंने जीते-जी समाधि ले ली। उनकी समाधिपर आज भी मेला लगता है और हजारों हिंदू-मुसलमान जाकर भजन-कीर्तन करते हैं।

उनकी वाणी अबतक कच्छ काठियावाड़ में घर-घर गायी जाती है। उनकी वाणीका कुछ नमूना यहाँ दिया जाता है —

जिसने रामको नहीं भजा, उसको बैलका जन्म मिलता है और वह खेत जोत-जोतकर जब मरता है, तब उसकी आँखें कौए नोचते हैं। xxx मैं श्मशान में गया, वहाँ कोरा घड़ा चिताके ऊपर पड़ा था अरे मनुष्यो एक दिन अपना भी ऐसा ही आनेवाला है। ये वही बँगले हैं, वही जगह है, दीवालोंके रंग-बिरंगे चित्र भी कायम हैं। मेकण कहता है- लोगो ! वे दीवाल रंगनेवाले चले गये।

जबतक जियो, किसीके साथ जहर न पैदा करो, सबके साथ शकर जैसी मिठास से रहो आदमी मर जायगा, पर उसकी भलाई रह जायगी।



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daada mekan jaatike raajapoot aur guru kaapada़ee ganaraajaake shishy the. kachchhake chhorapar sindha-gaang paar karake raastepar bhrang laadoee naamak gaanvamen unhonne apana saara jeevan bitaayaa. inake pitaaka naam haradhrolajee aur maataaka naam pabaanba thaa. unake paas laalaaraam naamaka ek gadha aur moteeraam naamaka ek kutta thaa. mekan saadhu gadhekee peethapar paaneekee chhoda़ daalate aur donon bagalake khanonmen do thande paaneeke bhare matake daal lete aur sirapar ek khaalee dabala lekar gadhe aur kutteke saath kachchh ke ranakee or nikal jaate. is prakaar ye chaar pairavaale pashu chaaron pahar ranamen phirate. raastemen pyaase musaaphironko paanee pilaate aur raasta bhoole huonko ve praanee maarg bataate the. jab paanee khatam ho jaata, tab ve donon pashu vaapas laut aate. jangalake cheete-jaise jangalee jaanavar bhee in donon pashuonse door rahate the. raasteke kinaare mekanaka sthaan kachchh aur sindhake musaaphironke liye ek khaas musaaphirakhaana ban gaya thaa. hajaaron musaaphironke liye ve kaanvar bharakar rotee laate, unako khilaate aur thanda paanee pilaate the aur thake logonko vahaan vishraam milata thaa.

mahaatma mekanane eka-ek dhooneepar baarah baarah varsh tapashcharya kee . antamen tapobalase ve bada़e bhaaree bhakt ho gaye. khyaati khoob badha़ee prashansa sunakar doora-doorase sant mahaatma aur mumukshu satsang karaneke liye aane lage. unake jeevanamen chamatkaar bhee khoob hue. dhrangamen mathasthaapana karake ve janataako aur apane shishyonko sadupadesh dene lage.

mahaatma mekanakee shishya-mandalee mekaapanthee kaapada़ee kahalaatee hai. saadhusamaajamen kaapada़iyonke do panth hain. aashaapuree mathake saadhu apaneko kaapada़ee kahate hain aur mekanaka shishyasampradaay apaneko mekaapanthee kaapada़ee kahata hai. mekaapanthee mathake mahant tyaagee hote hain, grihasthonko shishy banaate hain. aashaapuree mathake kaapada़ee maata jagadambaake pujaaree aur shaakt hote hain.

kachchhake raaja ek din shikaarake liye nikale. daada mekanakee prashansa sunakar unake darshanako gaye. saadhune atithiko dekhakar satkaar kiya, baithaneke liye aasan diyaa. raajaake dehapar chamakeelee raajasee poshaak mekanake manapar kuchh asar n kar sakee. raajaane kahaa- 'daadaajee ! kuchh maango kaho to raajyase rupaye bhijava doon.' mekanane jabaab diyaa- 'raajaa! rupaye-rupaye kya kar rahe ho. vah to maayaakee vastu hai. mar jaanepar to munhamen dhool hee pada़nevaalee hai. kuchh chale gaye aur kuchh chale jaayange. kis liye julm karate ho. mainne to shaharon-ke-shahar manushyake bina soone pada़e dekhe hain.' raajaane kahaa-' - 'mujhe kuchh upadesh deejiye.' bhaktane jabaab diyaa- 'raajaa! jnaanaroopee motee jaise-taiseko naheen mil sakataa. sachcha graahak milanepar hee hridayaroopee haat khulanee chaahiye.' raajaane kahaa- 'tab meree kuchh vinatee hee sveekaar keejiye.' bhaktane kahaa- 'raajaa! tumase ek hee cheej maanganee hai ki yahaan meree kutiyaake aasa-paas shikaar n khelo. aajase hee yahaan aasa-paas shikaar khelanekee manaahee hai.

sant mekan mahaan tyaagee the. unhonne kabhee kisee vastuka say naheen kiya jo mila usase logon kee seva kee. san0 1786 ke aashvin vadee chaturdasheeko unhonne jeete-jee samaadhi le lee. unakee samaadhipar aaj bhee mela lagata hai aur hajaaron hindoo-musalamaan jaakar bhajana-keertan karate hain.

unakee vaanee abatak kachchh kaathiyaavaada़ men ghara-ghar gaayee jaatee hai. unakee vaaneeka kuchh namoona yahaan diya jaata hai —

jisane raamako naheen bhaja, usako bailaka janm milata hai aur vah khet jota-jotakar jab marata hai, tab usakee aankhen kaue nochate hain. xxx main shmashaan men gaya, vahaan kora ghaड़a chitaake oopar pada़a tha are manushyo ek din apana bhee aisa hee aanevaala hai. ye vahee bangale hain, vahee jagah hai, deevaalonke ranga-birange chitr bhee kaayam hain. mekan kahata hai- logo ! ve deevaal ranganevaale chale gaye.

jabatak jiyo, kiseeke saath jahar n paida karo, sabake saath shakar jaisee mithaas se raho aadamee mar jaayaga, par usakee bhalaaee rah jaayagee.

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