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दो मित्र भक्त की मार्मिक कथा
दो मित्र भक्त की अधबुत कहानी - Full Story of दो मित्र भक्त (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [दो मित्र भक्त]- भक्तमाल


ललाटे लिखित यस्य मृत्युरित्यक्षरद्वयम्
स कथं कुरुते पापं समस्तक्लेशदायकम्
(पद्मपुराण, क्रियायोग0 16 । 33)

'जिसके ललाटपर (भाग्यमें) मृत्यु-ये दो अक्षर (निश्चित मरण) लिखे हैं, वह समस्त क्लेश देनेवाले पाप कैसे करता है।'

कुरुक्षेत्रमें एक ब्राह्मण पुण्डरीक और एक क्षत्रिय अम्बरीष रहते थे। दोनोंमें बड़ी मित्रता थी। खाना-पीना, टहलना-सोना, सब काम उनका साथ ही होता था। दोनों युवक थे, स्वतन्त्र थे; पासमें धन था और उसपर कुसङ्गमें पड़ गये। अब देव पूजन, सन्ध्या-तर्पण, पढ़ना-लिखना तो सब छूट गया और वे कुमार्गमें लग गये। वेश्या और मदिरा उन्हें प्रिय हो गयी। धर्म और परलोकका स्वप्नमें भी उन्हें ध्यान नहीं रहा।

पापमें आधी उम्र बीतते-बीतते दोनोंका धन नष्ट हो गया। वेश्या और शराबके चक्कर में घर-द्वार नीलाम हो गये। माँगनेपर एक पैसा भी मिलना कठिन हो गया। उनके चरित्रहीन मित्रोंने साथ छोड़ दिया। वेश्याने धक्के देकर उन दरिद्रोंको अपने घरसे निकाल दिया। समाजमें कोई उनसे बोलनातक नहीं चाहता था। अत्यन्त दुःखीहोकर दोनोंने अपनी जन्मभूमिका त्याग किया। उन्हें अब अपने कर्मोंपर बड़ा पश्चात्ताप हो रहा था ।

भटकते हुए दोनों एक यज्ञमण्डपके पास पहुँचे। पश्चात्तापसे उनके पाप कुछ घट गये थे। पूर्वजन्मके किसी पुण्यका उदय हो आया। ऋषियोंकी वेदध्वनि कानमें पड़ी तो दोनोंको यज्ञ-दर्शनकी इच्छा हुई। वे यज्ञशालामें गये। यज्ञ दर्शनसे उनका चित्त और शुद्ध हुआ। उनमें पश्चात्ताप विशेष वेगसे जागा । उनका हृदय दुःखित, पीड़ित होने लगा - 'हमने जो भयंकर पाप किये हैं, वे कैसे नष्ट होंगे? हमारे उद्धारका मार्ग कौन बतायेगा?'

उन्होंने सोचा कि ब्राह्मण बड़े दयालु होते हैं, अतः अवश्य ये ऋषिगण हमपर कृपा करके कोई उपाय बतायेंगे। दोनों मित्र ऋषियोंके पास जाकर उनके चरणोंपर गिर पड़े। फूट-फूटकर रोते हुए अपने पापोंका वर्णन करके वे उनसे छूटनेका उपाय पूछने लगे। पाप और पुण्य दोनों ही ऐसे हैं कि वर्णन करनेसे इनका क्षय होता है। वर्णन करनेसे इन दोनोंके पाप और घटे । दयालु विप्रोंने धैर्यपूर्वक इन दोनोंकी बातें सुनीं, पर इन दोनोंके उपयुक्त कोई प्रायश्चित इन्हें सूझ ही न पड़ता था । अन्तमेंउनमेंसे एक भकने कहा- तुम दोनों अपने पाचके लिये पश्चात्ताप कर रहे हो, यह बड़ा शुभ लक्षण है। तुम अब भगवान्की शरण ले लो जो अपने पिछले पापकि लिये पश्चात्ताप करता है, आगे पाप न करनेका दृढ़ निश्चय करके भगवान्‌को शरण ले लेता है और उन सर्वेश्वरके भजनमें हो जीवन बिताता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यह भगवान्‌को कृपासे उनका देवदुर्लभ दर्शन पाकर कृतार्थ हो जाता है। अतएव तुम दोनों श्रीजगन्नाथधाम जाओ और वहाँ दारुमय पुरुषो दर्शन करो। भगवान् जगन्नाथके दर्शन करके तुम सभी पापोंसे छूट जाओगे।'

वे दोनों उन महर्षिका उपदेश प्राप्तकर बड़ी उमंगसे पुरुषोत्तमक्षेत्रकी और चले भगवान्‌का ध्यान और भगवन्नामका जप यही अब उनका व्रत हो गया। श्रीजगन्नाथपुरी पहुँचकर उन्होंने समुद्र स्नान किया। तदनन्तर वे भगवान् के दर्शन करने गये, पर उन्हें भगवान्की मूर्तिके दर्शन नहीं हुए। भगवान् श्रीविग्रह केदर्शन न होनेसे उन्हें बड़ा दुःख हुआ। भगवान्के पापहारी नामोंका आर्तभावसे कीर्तन करते हुए वे तीन दिन निर्जल वहीं पड़े रहे। तीसरे दिन रात्रिमें उन्हें ज्योतिके दर्शन हुए। तीन दिन और वे उसी प्रकार उपवास किये कीर्तन करते रहे। सातवीं रात्रिको स्वप्नमें भगवान्ने अपने दिव्य रूपकी झाँकी दी। कोई कितना भी पापी क्यों न हो, यदि उसके मनमें पश्चात्ताप जाग पड़े, वह पुनः पाप न करनेका निश्चय करके भगवान्‌की शरण ले ले, तो अवश्य प्रभु उसे अपना लेते हैं। वे दोनों मित्र सात दिनसे भगवान्‌के द्वारपर निराहार रहकर उन मंगलमयके दिव्य नामोंका श्रद्धा-विश्वासपूर्वक आर्तभावसे कीर्तन कर रहे थे। उनके सारे पाप भस्म हो चुके थे। प्रभुने उनपर कृपा की। नेत्र खुलते ही स्वप्नमें होनेवाली भगवान्‌की ज्योतिर्मयी दिव्य झाँकीको प्रत्यक्ष देखकर वे कृतार्थ हो गये! भगवान्‌का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ उन्हें । फिर तो वे भगवान्का भजन करते जीवनभर पुरुषोत्तमपुरीमें ही रहे।



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lalaate likhit yasy mrityurityaksharadvayam
s kathan kurute paapan samastakleshadaayakam
(padmapuraan, kriyaayoga0 16 . 33)

'jisake lalaatapar (bhaagyamen) mrityu-ye do akshar (nishchit marana) likhe hain, vah samast klesh denevaale paap kaise karata hai.'

kurukshetramen ek braahman pundareek aur ek kshatriy ambareesh rahate the. dononmen bada़ee mitrata thee. khaanaa-peena, tahalanaa-sona, sab kaam unaka saath hee hota thaa. donon yuvak the, svatantr the; paasamen dhan tha aur usapar kusangamen pada़ gaye. ab dev poojan, sandhyaa-tarpan, padha़naa-likhana to sab chhoot gaya aur ve kumaargamen lag gaye. veshya aur madira unhen priy ho gayee. dharm aur paralokaka svapnamen bhee unhen dhyaan naheen rahaa.

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ve donon un maharshika upadesh praaptakar bada़ee umangase purushottamakshetrakee aur chale bhagavaan‌ka dhyaan aur bhagavannaamaka jap yahee ab unaka vrat ho gayaa. shreejagannaathapuree pahunchakar unhonne samudr snaan kiyaa. tadanantar ve bhagavaan ke darshan karane gaye, par unhen bhagavaankee moortike darshan naheen hue. bhagavaan shreevigrah kedarshan n honese unhen baड़a duhkh huaa. bhagavaanke paapahaaree naamonka aartabhaavase keertan karate hue ve teen din nirjal vaheen pada़e rahe. teesare din raatrimen unhen jyotike darshan hue. teen din aur ve usee prakaar upavaas kiye keertan karate rahe. saataveen raatriko svapnamen bhagavaanne apane divy roopakee jhaankee dee. koee kitana bhee paapee kyon n ho, yadi usake manamen pashchaattaap jaag pada़e, vah punah paap n karaneka nishchay karake bhagavaan‌kee sharan le le, to avashy prabhu use apana lete hain. ve donon mitr saat dinase bhagavaan‌ke dvaarapar niraahaar rahakar un mangalamayake divy naamonka shraddhaa-vishvaasapoorvak aartabhaavase keertan kar rahe the. unake saare paap bhasm ho chuke the. prabhune unapar kripa kee. netr khulate hee svapnamen honevaalee bhagavaan‌kee jyotirmayee divy jhaankeeko pratyaksh dekhakar ve kritaarth ho gaye! bhagavaan‌ka pratyaksh darshan hua unhen . phir to ve bhagavaanka bhajan karate jeevanabhar purushottamapureemen hee rahe.

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