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भक्त चण्डीदास की मार्मिक कथा
भक्त चण्डीदास की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त चण्डीदास (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त चण्डीदास]- भक्तमाल


भक्त चण्डीदासका जन्म वीरभूमि जनपदके छटना ग्राममें हुआ था। उनकी बाल्यावस्थायें हो बोलपुरसे दस मील दूर ननुरा ग्राममें परिवारके लोग जा बसे थे। उस प्रदेशमें इस परिवारकी गणना कट्टर ब्राह्मणोंमें होती थी, लोग आचार-विचारका बड़ा ध्यान रखते थे। चण्डीदास वासुलीदेवी मन्दिरमें पुजारी नियुक्त हुए। वे देवीकी उपासना और प्रेम-गीत-साधनायें ही अपनी महती शक्तिका उपयोग करते थे। उस समय उनकी अवस्था सुकुमार थी, मुखपर यौवनकी रेखाएँ मुसकरा रही थीं, उनके गौर वर्णपर सौन्दर्य शृङ्गार रसका चित्र उतार रहा था, प्रत्येक क्रियामें अल्हड़ता थी, स्वभाव मृदुल और प्रेमिल था। कण्ठदेशसे सदा सरस स्वरकी मन्दाकिनी प्रवाहित होती रहती थी।

एक दिन वे सरिता-तटकी ओर जा रहे थे, उन्होंने एक सुन्दरी रजककन्याको देखा। उसका नाम रामी था । वह कपड़े धो रही थी। दोनोंने एक दूसरेको देखा। हृदयमें शुद्ध प्रेमका सञ्चार हुआ। वासना और आसक्तिकी गन्धतक नहीं थी; रामी ब्राह्मण देवताकी चरणधूलि ले सकती थी, ब्राह्मण चण्डीदास उसे केवल आशीर्वाद दे सकते थे दोनों ओर विवशता थी चण्डीदास उसकी ओर आकृष्ट हो गये। उनकी कण्ठभारतीने रामीके सौन्दर्यमें अलौकिकता, दिव्यता और पवित्र प्रेमका दर्शन किया। रामी चण्डीदासके लिये सब कुछ हो चली। देवीकी सेवामें उनकी आसक्ति कम हो गयी, वे रात दिन प्रेमकी सङ्गीतामृत - लहरीमें सराबोर होकर श्रीराधा कृष्णके प्रेमगानमें विभोर रहते थे कण-कणमें उन्हें श्रीराधा-कृष्णका सौन्दर्य-माधुर्य दीख पड़ने लगा। लोग उन्हें 'पगला चण्डी' कहकर पुकारने लगे। पगलाकी उपाधि तत्कालीन बंगालमें उन्हें दी जाती थी, जो सदा प्रेमनिमग्र रहा करते थे। वस्तुतः प्रेम भगवान्‌का ही रूप है, प्रेम आत्माका स्वरूप है और हृदयकी परम मूल्यवान् गुप्त सम्पत्ति है जिन्हें एक बार प्रेमका सुधा रस-बिन्दु 1 मिल जाता है, उन्हें संसारमें और कुछ भी अच्छा नहीं लगता। इसीसे प्रेमी चण्डीदासने पार्थिव सौन्दर्यके गीतनहीं गाये। एक पदमें श्रीवृषभानुनन्दिनीके पवित्र भावसे भावित होकर वे श्यामसुन्दरसे कह रहे हैं- मानो श्रीलाड़िलीजी अपने प्राण प्रियतम श्यामसुन्दरको सामने देखकर उन्हें अपने हृदयकी क्रन्दन- ध्वनि सुना रही हैं l

बंधु कि आर बलिव आमि।

जीवने मरणे जनमे जनमे प्राणनाथ हैओ तुमि ॥

तोमार चरणे आमार पराणे बाँधिल प्रेमेर फाँसी।

सब समर्पिया एक मन हैया निचय हैलाम दासी ॥

भावि देखिलाभ ए तीन भुवने आर के आमार आछे ।

राधा बलि केह सुधाइते नाइ, दौड़ाव काहार काछे ।।

ए कुले ओ कुले दु कुले गोकुले आपना बलिब काय ।

शीतल बलिया शरण लइनु, ओ दुटी कमल पाय ।

ना ठेलिओ मोरे अबला बलिये, ये हय उचित तोर।

भाविया देखिनु प्राणनाथ बिने गति ये नाहिक मोर ॥

आँखिर निमिषे यदि नाहि देखि, तवे से पराणे मरि

चण्डीदास कय परशरतन गलाय गॉथिया परि ॥

'मेरे प्रियतम! और मैं तुम्हें क्या कहूँ। बस, इतना ही चाहती हूँ- जीवनमें-मृत्युमें, जन्म-जन्ममें तुम्हीं मेरे प्राणनाथ रहना। तुम्हारे चरण एवं मेरे प्राणोंमें प्रेमकी गाँठ लग गयी है; मैं सब कुछ तुम्हें समर्पितकर एकान्त मनसे तुम्हारी दासी हो चुकी हूँ। मेरे प्राणेश्वर! मैं सोचकर देखती हूँ - इस त्रिभुवनमें तुम्हारे अतिरिक्त मेरा और कौन है। 'राधा' कहकर मुझे पुकारनेवाला तुम्हारे सिवा और कोई भी तो नहीं है। मैं किसके समीप जाकर खड़ी होऊँ? इस गोकुलमें कौन है, जिसे मैं अपना कहूँ? सर्वत्र ज्वाला है, एकमात्र तुम्हारे युगल चरणकमल ही शीतल हैं; उन्हें शीतल देखकर हो मैं तुम्हारी शरण में आयी हूँ। तुम्हारे लिये भी अब यही उचित है कि मुझ अबलाको चरणोंमें स्थान दे दो मुझे अपने शीतल चरणोंसे दूर मत फेंक देना। नाथ! सोचकर देखती हूँ, मेरे प्राणनाथ! तुम्हारे बिना अब मेरी अन्य गति ही कहाँ है। तुम यदि दूर फेंक दोगे तो मैं अबला कहाँ जाऊँगी 1 मेरे प्रियतम! एक निमेषके लिये भी जब तुम्हें नहीं देख पाती, तब मेरे प्राण निकलने लगते हैं। मेरे स्पर्शमणि!तुम्हें ही तो मैं अपने अङ्गोंका भूषण बनाकर गलेमें धारण करती हूँ।'

भक्त चण्डीदास और महाकवि विद्यापति परस्पर एक-दूसरेसे प्रभावित थे। चण्डीदास विद्यापतिसे मिलने गये थे। परम पवित्र भगवती भागीरथीके तटपर चण्डीदास और कविशेखर विद्यापतिका सम्मिलन हुआ था, प्रेम और सौन्दर्यने एक-दूसरेका दर्शन किया था।

चण्डीदासने श्रीकृष्णप्रेमका अत्यन्त अलौकिक ढंगसे वर्णन किया, वे श्रीकृष्णके पूर्ण भक्त थे। श्री श्रीचैतन्यमहाप्रभु उनके गीतोंसे भक्तिके उद्दीपन तत्त्वकी अनुभूति किया करते थे।

चण्डीदासने सुखमें दुःख देखा था। वे मिलन सुखमें वियोगके दुःखसे सदा आशङ्कित रहते थे। विरहकालमें वे मूर्तिमान् अनुराग हो उठते थे। उनका भगवत्प्रेम अथवा श्रीराधाकृष्णका भक्तिभाव सर्वथा लोकोत्तर था। उसमें माधुर्य-ही-माधुर्य दीख पड़ता है।

सइ केवा सुनाइल श्याम नाम।

कानर भीतर दिया मरमे पशिल गो आकुल करिल मोर प्रान ॥

ना जानि कतेक मधु श्याम नामे आछे गो बदन छाड़िते नाहिं पारे ।

जपिते जपिते नाम अवश करिल गो केमने पाइब सइ तारे ॥

नाम- परतापे आर ऐछन करिल गो अंगेर परशे किवा हय।

जे खाने बसति तार नयने देखिया गो युवति धरम कैछे रय ।।

पाशरिते करि मने पाशरा न जाय गो कि करिबो कि हवे उपाय।

कहे द्विज चण्डीदास कुलवती कुल नाशे आपनार यौवन याचाय ॥

'सखि! यह श्याम-नाम किसने सुनाया, यह कानके द्वारा मर्मस्थानमें प्रवेश कर गया और इसने मेरे प्राणोंको व्याकुल कर दिया। पता नहीं, श्याम नाममें कितना माधुर्य है, इसे मुँह कभी छोड़ नहीं सकता। नाम जपते | जपते इसने मुझे अवश कर दिया, सखि! मैं अब उसे कैसे पाऊँगी। जिसके नामने मेरी यह दशा कर दी, उसके अङ्ग-स्पर्शसे तो पता नहीं क्या होता है। वह जहाँ रहता है, वहाँ उसे आँखोंसे देखनेपर युवतीका धर्म कैसे रह सकता है? मैं भूल जाना चाहती हूँ, पर मनमें भुलाया नहीं जा सकता, मैं अब क्या करूँ, मेरे लिये क्या उपाय होगा? चण्डीदास द्विज कहता है इससे कुलवतीका कुल नाश होता है, जो अपना यौवन दे देती है।'

चण्डीदासका समस्त जीवन प्रेम-साधनासे परिपूर्ण था, उन्होंने अपनी पदावलीमें सर्वत्र श्रीराधा-कृष्णके प्रेमके गीत गाये हैं, भगवदीय माधुर्यकी विजयिनी पताका फहरानेवालोंमें चण्डीदासका नाम एक गौरवपूर्ण और विशिष्ट स्थानपर प्रतिष्ठित है। चण्डीदासका नाम सुनते ही नयनोंमें प्रेमके अश्रु उमड़ पड़ते हैं, रसनापर श्रीराधा-कृष्णका सौन्दर्य-माधुर्य छलक पड़ता है, हृदयमें भक्तिकी मन्दाकिनीका वेग बढ़ जाता है। चण्डीदास पूर्ण प्रेमी और परम भगवद्भक्त थे।



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bandhu ki aar baliv aami.

jeevane marane janame janame praananaath haio tumi ..

tomaar charane aamaar paraane baandhil premer phaansee.

sab samarpiya ek man haiya nichay hailaam daasee ..

bhaavi dekhilaabh e teen bhuvane aar ke aamaar aachhe .

raadha bali keh sudhaaite naai, dauda़aav kaahaar kaachhe ..

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naama- parataape aar aichhan karil go anger parashe kiva haya.

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paasharite kari mane paashara n jaay go ki karibo ki have upaaya.

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मेरे जीवन की जुड़ गयी डोर, किशोरी तेरे
किशोरी तेरे चरणन में, महारानी तेरे
मोहे आन मिलो श्याम, बहुत दिन बीत गए।
बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
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