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भक्त पर्वतजी की मार्मिक कथा
भक्त पर्वतजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त पर्वतजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त पर्वतजी]- भक्तमाल


पर्वतजी भक्तराज नरसी मेहताके चचा थे। इनका यह नियम था कि प्रतिदिन हाथमें तुलसीजीका गमला लिया और अपने गाँव माँगरोळसे भगवान्का नाम लेते हुए चल पड़े। कोसों दूर द्वारका जाकर, श्रीरणछोड़रायजीके चरणों में उसे रखके, दण्डवत् करके फिर अपने घर आ जाते थे। अपने घर केवल रातमें रहते और उसमें भी गमलों में तुलसी बोते और प्रातःकाल होते ही चल देते। अड़सठ वर्षतक इनका यह नियम चलता रहा। अब शरीर बूढ़ा हो गया, ज्वर आने लगा, घरके लोगोंने मना किया; फिर भी ये कब मानने लगे। इनका नियम अखण्ड रहा।

एक दिन थक जानेके कारण चार कोस दूर आजक गाँवके बाहर बावलीकी सीढ़ीपर ये सो गये और स्वप्न देखा कि मैं भगवान् द्वारकाधीशकी सेवा कर रहा हूँ तथा वे प्रकट होकर कह रहे हैं कि 'मैं तुमपर प्रसन्न हूँ । अगहन शुक्ला षष्ठीको गोमतीको साथ लेकर तुम्हारे गाँवमें मैं ही आ जाऊँगा। अब यहाँ आनेकी आवश्यकता नहीं।'इतनेमें ही इनकी आँख खुल गयी। ये अपने भगवान्‌को देखनेके लिये व्याकुल हो उठे। परंतु न देख सकने के कारण स्वप्नपर पूरा भरोसा न हुआ। उसी समय आकाशवाणी हुई और फिर वही बात दुहरायी गयी। अब पर्वतदासने भगवान्‌की आज्ञा शिरोधार्य की। लोगोंको बड़ी प्रसन्नता हुई।

इधर एक कारीगरने, जिसका नाम वासुदेव था, पंद्रह महीनेतक परिश्रम करके एक सिंहासन बनाया था, उसे लेकर पर्वतदासके घर आनेकी आज्ञा हुई। ठीक वि0 सं0 1500 की अगहन शुक्ला षष्ठीके दिन चार घड़ी दिन चढ़ते-चढ़ते पर्वतदासके घरके पासकी बावलीमें दैवी जल एकाएक बढ़ने लगा और भगवान् श्रीरणछोड़राय उससे प्रकट हुए। सब लोगोंने उनकी पूजा की, उसी सिंहासनपर भगवान् विराजमान हुए। श्रीरणछोड़रायजीका वह प्राचीन विग्रह आज भी माँगरोळमें विराजित है और सिंहासन भी वहीं मौजूद है। इनके प्रतापसे माँगरोळ भारतका एक पवित्र तीर्थ हो गया है।



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parvatajee bhaktaraaj narasee mehataake chacha the. inaka yah niyam tha ki pratidin haathamen tulaseejeeka gamala liya aur apane gaanv maangarolase bhagavaanka naam lete hue chal pada़e. koson door dvaaraka jaakar, shreeranachhoड़raayajeeke charanon men use rakhake, dandavat karake phir apane ghar a jaate the. apane ghar keval raatamen rahate aur usamen bhee gamalon men tulasee bote aur praatahkaal hote hee chal dete. ada़sath varshatak inaka yah niyam chalata rahaa. ab shareer boodha़a ho gaya, jvar aane laga, gharake logonne mana kiyaa; phir bhee ye kab maanane lage. inaka niyam akhand rahaa.

ek din thak jaaneke kaaran chaar kos door aajak gaanvake baahar baavaleekee seedha़eepar ye so gaye aur svapn dekha ki main bhagavaan dvaarakaadheeshakee seva kar raha hoon tatha ve prakat hokar kah rahe hain ki 'main tumapar prasann hoon . agahan shukla shashtheeko gomateeko saath lekar tumhaare gaanvamen main hee a jaaoongaa. ab yahaan aanekee aavashyakata naheen.'itanemen hee inakee aankh khul gayee. ye apane bhagavaan‌ko dekhaneke liye vyaakul ho uthe. parantu n dekh sakane ke kaaran svapnapar poora bharosa n huaa. usee samay aakaashavaanee huee aur phir vahee baat duharaayee gayee. ab parvatadaasane bhagavaan‌kee aajna shirodhaary kee. logonko bada़ee prasannata huee.

idhar ek kaareegarane, jisaka naam vaasudev tha, pandrah maheenetak parishram karake ek sinhaasan banaaya tha, use lekar parvatadaasake ghar aanekee aajna huee. theek vi0 san0 1500 kee agahan shukla shashtheeke din chaar ghada़ee din chadha़te-chadha़te parvatadaasake gharake paasakee baavaleemen daivee jal ekaaek badha़ne laga aur bhagavaan shreeranachhoड़raay usase prakat hue. sab logonne unakee pooja kee, usee sinhaasanapar bhagavaan viraajamaan hue. shreeranachhoड़raayajeeka vah praacheen vigrah aaj bhee maangarolamen viraajit hai aur sinhaasan bhee vaheen maujood hai. inake prataapase maangarol bhaarataka ek pavitr teerth ho gaya hai.

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