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भक्त रैदासजी की मार्मिक कथा
भक्त रैदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त रैदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त रैदासजी]- भक्तमाल


मैं अपनो मन हरिजू साँ जोरया,

हरिजू सौं जोरि सबन सौ तोरयौ ।

सब ही पहर तुम्हारी आसा,

मन क्रम वचन कहै रैदासा ॥

प्रभुकी भक्तिमें जाति-पाँतिका भेदभाव न कभी था और न कभी रह ही सकता है।

रैदासने स्वयं कहा है-

जाति भी ओछी, करम भी ओछा,

ओछा किसब हमारा।

नीचे से प्रभु ऊँच कियो है,

कह रैदास चमारा ॥

रैदासके जन्मकी निश्चित तिथि अबतक सन्दिग्ध-सी. है। कबीरके समसामयिक होनेके कारण इनका समय ईस्वी सन्की पंद्रहवीं सदी ठहरता है। रैदासका जन्म काशी में ही हुआ और ये कई बार कबीरके सत्सङ्गमें भी सम्मिलित हुए थे। कथा है कि पूर्वजन्ममें ये ब्राह्मण थे और स्वामी रामानन्दके शापसे चमारके घर उत्पन्न हुए। बचपनसे ही रैदास साधुसेवी थे। इस कारण इनके पितारघु इनपर नाराज रहा करते थे। बात यहाँतक बढ़ी कि उन्होंने रैदासको घरसे निकाल दिया और खर्चके लिये एक पैसा भी नहीं दिया।

रैदास अलमस्त फक्कड़ थे। लोक-परलोककी, निन्दा 7 स्तुतिकी ओर उनकी दृष्टि गयी ही नहीं। घरमें एक सती-साध्वी स्त्री थी। जो कुछ घरमें होता, उसे तैयारकर वह पतिकी सेवामें ला रखती। रैदास एक मामूली झोंपड़ीमें रहते थे। जूते बनाकर अपनी जीविका चलाते थे। पासमें ही श्रीठाकुरजीकी चतुर्भुजी मूर्ति थी । जूते टाँकते जाते और प्रेमविह्वल वाणीमें अपने हरिकी ओर निहार-निहारकर गाते रहते-

प्रभुजी ! तुम चंदन, हम पानी । जाकी अँग अँग बास समानी ॥

प्रभुजी ! तुम घन, बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा ॥

प्रभुजी ! तुम मोती, हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।

प्रभुजी ! तुम स्वामी, हम दासा । ऐसी भगति करै रैदासा ॥

प्रभुजी ! तुम दीपक, हम बाती । जाकी जोति बरै दिन राती ॥

कहते हैं, इनकी आर्थिक दुरवस्थाको देखकर प्रभुको दया आयी और उन्होंने साधुरूपमें रैदासजीके पासआकर उनको पारस पत्थर दिया और उससे जूता सीनेके एक लोहेके औजारको सोना बनाकर दिखा भी दिया। रैदासजीने उस पत्थरको लेनेसे इन्कार कर दिया। परंतु साधु भी एक हठी था। लाचार होकर रैदासने कहा, 'नहीं मानते हो तो छप्परमें खोंस दो।' तेरह महीने बाद जब वही साधु फिर आये और पत्थरका हाल पूछा, तब रैदासने कहा कि 'जहाँ खोंस गये थे, वहीं देख लो; मैंने उसे छुआ भी नहीं है । '

भक्तमालमें रैदासके सम्बन्धमें कई बातें लिखी हैं। उनमें एक यह भी है कि चित्तौड़की रानीने, जो एक बार काशीयात्राके लिये आयी थीं, रैदासकी महिमा सुनकर उनको अपना गुरु बनाया। रैदासके सम्बन्धमें चमत्कारकी कई बातें प्रख्यात हैं, जिनसे यही स्पष्ट प्रमाणित होता है कि भगवान्‌के दरबारमें जाति-पाँतिका उतना महत्त्व नहीं है जितना भक्ति और लगनका है।

पूरे 120 वर्षके होकर रैदासजी भगवद्धामको प्राप्त हुए । उनके पन्थके अनुयायियोंका विश्वास है कि वे सदेह गुप्त हो गये। गुजरात, बिहार आदि कई प्रान्तोंमेंलाखों आदमी ऐसे हैं जो अपनेको 'रैदासी' कहते हैं। रैदासजी प्रेम और वैराग्यकी तो मूर्ति ही थे । श्रीहरिचरणोंका अनन्य आश्रय ही उनकी साधनाका प्राण है-

जो तुम तौरो राम, मैं नहिं तोरौं ।

तुम सौं तोरि कवन सौं जोरौं ।

तीरथ बरत न करौं अंदेसा ।

तुम्हरे चरन कमल क भरोसा ॥

जहँ जहँ जाऔँ तुम्हरी पूजा

तुम सा देव और नहिं दूजा ॥

रैदासकी विवशता भी कितनी सरल, कितनीस्वाभाविक है

नरहरि ! चंचल है मति मेरी, कैसे भगति करूँ मैं तेरी ॥

तूं मोहि देखै, हौं तोहि देखूँ, प्रीति परसपर होई ।

तूं मोहि देखे, तोहि न देखूँ, यह मति सब बुधि खोई ॥

सब घट अंतर रमसि निरंतर, मैं देखन नहिं जाना।

गुन सब तोर, मोर सब औगुन, कृत उपकार न माना ॥

मैं तैं, तोरि मोरि असमझि सों, कैसे करि निस्तारा ।

कह रैदास कृष्ण करुनामय! जै जै जगत अधारा ॥



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main apano man harijoo saan joraya,

harijoo saun jori saban sau torayau .

sab hee pahar tumhaaree aasa,

man kram vachan kahai raidaasa ..

prabhukee bhaktimen jaati-paantika bhedabhaav n kabhee tha aur n kabhee rah hee sakata hai.

raidaasane svayan kaha hai-

jaati bhee ochhee, karam bhee ochha,

ochha kisab hamaaraa.

neeche se prabhu oonch kiyo hai,

kah raidaas chamaara ..

raidaasake janmakee nishchit tithi abatak sandigdha-see. hai. kabeerake samasaamayik honeke kaaran inaka samay eesvee sankee pandrahaveen sadee thaharata hai. raidaasaka janm kaashee men hee hua aur ye kaee baar kabeerake satsangamen bhee sammilit hue the. katha hai ki poorvajanmamen ye braahman the aur svaamee raamaanandake shaapase chamaarake ghar utpann hue. bachapanase hee raidaas saadhusevee the. is kaaran inake pitaaraghu inapar naaraaj raha karate the. baat yahaantak badha़ee ki unhonne raidaasako gharase nikaal diya aur kharchake liye ek paisa bhee naheen diyaa.

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prabhujee ! tum ghan, ban ham moraa. jaise chitavat chand chakora ..

prabhujee ! tum motee, ham dhaagaa. jaise sonahin milat suhaagaa.

prabhujee ! tum svaamee, ham daasa . aisee bhagati karai raidaasa ..

prabhujee ! tum deepak, ham baatee . jaakee joti barai din raatee ..

kahate hain, inakee aarthik duravasthaako dekhakar prabhuko daya aayee aur unhonne saadhuroopamen raidaasajeeke paasaaakar unako paaras patthar diya aur usase joota seeneke ek loheke aujaarako sona banaakar dikha bhee diyaa. raidaasajeene us pattharako lenese inkaar kar diyaa. parantu saadhu bhee ek hathee thaa. laachaar hokar raidaasane kaha, 'naheen maanate ho to chhapparamen khons do.' terah maheene baad jab vahee saadhu phir aaye aur pattharaka haal poochha, tab raidaasane kaha ki 'jahaan khons gaye the, vaheen dekh lo; mainne use chhua bhee naheen hai . '

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poore 120 varshake hokar raidaasajee bhagavaddhaamako praapt hue . unake panthake anuyaayiyonka vishvaas hai ki ve sadeh gupt ho gaye. gujaraat, bihaar aadi kaee praantonmenlaakhon aadamee aise hain jo apaneko 'raidaasee' kahate hain. raidaasajee prem aur vairaagyakee to moorti hee the . shreeharicharanonka anany aashray hee unakee saadhanaaka praan hai-

jo tum tauro raam, main nahin toraun .

tum saun tori kavan saun joraun .

teerath barat n karaun andesa .

tumhare charan kamal k bharosa ..

jahan jahan jaaaun tumharee poojaa

tum sa dev aur nahin dooja ..

raidaasakee vivashata bhee kitanee saral, kitaneesvaabhaavik hai

narahari ! chanchal hai mati meree, kaise bhagati karoon main teree ..

toon mohi dekhai, haun tohi dekhoon, preeti parasapar hoee .

toon mohi dekhe, tohi n dekhoon, yah mati sab budhi khoee ..

sab ghat antar ramasi nirantar, main dekhan nahin jaanaa.

gun sab tor, mor sab augun, krit upakaar n maana ..

main tain, tori mori asamajhi son, kaise kari nistaara .

kah raidaas krishn karunaamaya! jai jai jagat adhaara ..

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