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भक्त लोचनदास की मार्मिक कथा
भक्त लोचनदास की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त लोचनदास (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त लोचनदास]- भक्तमाल


बंगालके बर्दवान जिलेमें कोग्राम नामक स्थान भक्तवर श्रीलोचनदासजीकी जन्मभूमि था। घर सम्पन्न था। लोचनदास अपने माता-पिताकी एकमात्र सन्तान थे और उनका ननिहाल भी उसी गाँवमें होनेके कारण वृद्ध नाना-नानी भी उनको बहुत ही प्यार करते थे। इस प्यार-दुलारके कारण लोचनदासका बाल्यजीवन प्रायः हँसने- खेलनेमें ही बीता। उन्हें पढ़ने-लिखनेका विशेष अवसर नहीं मिला।

घरमें सम्पन्न होने और माता- -पिता तथा नाना-नानीके परम स्नेहसे सदा पले होनेपर भी लोचनदासका मन किसी पूर्वसंस्कारवश विषयोंमें नहीं लगता था। वेखेलनेमें ही मिट्टीके महल बनाते और उन्हें फिर न बिगाड़कर कहते, 'देखो, यह संसार भी ऐसा ही है 7 आज है, कल नहीं।'

लोचनदासके बहुत मना करनेपर भी उनके माता पिताने उनका विवाह ग्यारह वर्षकी अवस्थामें ही कर दिया। इनकी स्त्री वास्तवमें लक्ष्मीके समान रूप और गुणोंसे सम्पन्न थी। परंतु लोचनदासका मन इधर नहीं फिरा । जिधर लगा था, वहीं लगा रहा।

श्रीखण्ड नामक स्थानमें श्रीचैतन्यमहाप्रभुके भक्त पण्डितप्रवर नरहरिजी महाराज निवास करते थे। वे जैसे प्रेमी भक्त थे, वैसे ही सर्वशास्त्रोंके ज्ञाता विद्वान् भी थे।श्रीलोचनदास भी श्रीखण्ड जाकर श्रीनरहरिजौके सत्सङ्गका लाभ उठाने लगे। ये उन्हींसे दीक्षा लेकर उनके शिष्य हो गये। इनका वैराग्य श्रीकृष्ण- अनुरागके रूपमें बदल गया। संसारकी रही-सही आसक्ति भी नष्ट हो गयी। वे भगवान् के प्रेममें निमग्न होकर माता-पिता, पत्नी, गाँव, घर, नगर- सभी भूल गये। इनके माता-पिताको भी यह जानकर आनन्द हुआ कि लड़का श्रीनरहरि जैसे सुयोग्य पण्डितका शिष्य बना है-परंतु लोचनदासजीकी पत्नीके पूर्ण युवती हो जानेके कारण वे उन्हें घर ही लाना चाहते थे। इनकी स्त्री इनके वियोगमें दिन-रात आँसू बहाया करती थी। इनके पिता कमलाकरजीने सब हाल नरहरिजीको सुनाया और उनकी विशेष आज्ञासे ये अपनी पत्नीको लाने आमोदपुर ग्राममें अपनी ससुराल गये।

लोचनदास गुरु आज्ञासे ससुराल पहुँचे, किंतु ग्राम में भूल जानेके कारण उन्हें अपनी ससुरालका घर याद नहीं था। विधाताका विधान ही कुछ और था गाँवमें घुसते ही उन्हें एक सुन्दरी युवती मिली। उन्होंने बड़े ही विनीत भावसे उससे पूछा- माताजी अमुकका घर कहाँ है? किस रास्ते होकर जानेसे वहाँ पहुँच सकूँगा?" युवती एक बार इनकी ओर देख अँगुलीके इशारेसे इन्हें रास्ता दिखा नीचा मुख किये अपनी राह चली गयी। लोचनदास ससुराल पहुँचे।

स्वागत-सत्कार, कुशल प्रश्न, स्नान-भोजनके पश्चात् ये जब अपनी पत्नीसे मिले, तब ये यह जान अत्यन्त भीत हो गये कि जिसे उन्होंने माताजी कहकर सम्बोधित किया, वही इनकी पत्नी थी।

पतिके मुखसे माताजी शब्द याद आते ही वह तरुणी भी काँप गयी युवती विषादके आवेगमें साड़ीके | आँचलसे आँखें पोंछकर दूर हट गयी। लोचनदास भीसब समझ गये। उनके मुखसे एक शब्द भी निकलना कठिन हो गया।

समयकी गति बलवान् है। रातभर पति-पत्नी दोनों
आँसू बहाते रहे। धर्मभीरु लोचनदासने अपनी पत्नीको समझाया। उसने भी गदद कण्डसे यही कहा-'स्वामिन् मेरे तो आप ही आराध्य हैं आपको छोड़कर मैं दूसरे किसी ईश्वरको नहीं जानती। मैं भोगकी भूखी नहीं। मुझे आपका शरीर नहीं चाहिये में यह भी नहीं चाहती कि आपने जिसको एक बार माँ कह दिया, उसके साथ पत्नीका सा व्यवहार करके धर्मपथसे च्युत हों। किंतु प्रभो! मुझे आप सेवाका अधिकार तो दे ही सकते हैं, मुझे अपनेसे विलग मत कीजिये।'

पवित्र शील-व्रतको धारणकर दोनों पति-पत्नी परमात्माके मार्गपर चलनेके लिये सूर्योदयके पूर्वसे ही वहाँसे चल पड़े।

पिता-माताकी मृत्युके पश्चात् लोचनदास अपनी सारी धन-दौलत गरीबोंको बाँटकर ग्रामके बाहर एक पर्णकुटी बनाकर सती पत्नीके साथ भजन करने लगे। भगवत्प्रेममें दोनों मस्त रहते थे। लोचनदासजीका श्रीचैतन्यमहाप्रभुके चरणोंमें प्रगाढ़ प्रेम था। उन्होंने चैतन्यमङ्गल नामक महाकाव्यकी रचना की लोचनदास चैतन्यमङ्गलका गान करते और सती पत्नी पास बैठी एकाग्र मनसे हर्षाश्रु बहाती हुई सुनती। इस प्रकार युवती पत्नी लोचनदासजीकी साधन-सङ्गिनी बन गयी। लोचनदासजीके दुर्लभसार, वस्तुतत्त्वसार, आनन्दलतिका, प्रार्थना, चैतन्य प्रेमविलास, देहनिरूपण और रागलहरी नामक सात ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध हैं। उनका सारा जीवन भजन-कीर्तन और ग्रन्थनिर्माण में ही बीता।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt lochanadaasa]- Bhaktmaal


bangaalake bardavaan jilemen kograam naamak sthaan bhaktavar shreelochanadaasajeekee janmabhoomi thaa. ghar sampann thaa. lochanadaas apane maataa-pitaakee ekamaatr santaan the aur unaka nanihaal bhee usee gaanvamen honeke kaaran vriddh naanaa-naanee bhee unako bahut hee pyaar karate the. is pyaara-dulaarake kaaran lochanadaasaka baalyajeevan praayah hansane- khelanemen hee beetaa. unhen padha़ne-likhaneka vishesh avasar naheen milaa.

gharamen sampann hone aur maataa- -pita tatha naanaa-naaneeke param snehase sada pale honepar bhee lochanadaasaka man kisee poorvasanskaaravash vishayonmen naheen lagata thaa. vekhelanemen hee mitteeke mahal banaate aur unhen phir n bigaada़kar kahate, 'dekho, yah sansaar bhee aisa hee hai 7 aaj hai, kal naheen.'

lochanadaasake bahut mana karanepar bhee unake maata pitaane unaka vivaah gyaarah varshakee avasthaamen hee kar diyaa. inakee stree vaastavamen lakshmeeke samaan roop aur gunonse sampann thee. parantu lochanadaasaka man idhar naheen phira . jidhar laga tha, vaheen laga rahaa.

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lochanadaas guru aajnaase sasuraal pahunche, kintu graam men bhool jaaneke kaaran unhen apanee sasuraalaka ghar yaad naheen thaa. vidhaataaka vidhaan hee kuchh aur tha gaanvamen ghusate hee unhen ek sundaree yuvatee milee. unhonne bada़e hee vineet bhaavase usase poochhaa- maataajee amukaka ghar kahaan hai? kis raaste hokar jaanese vahaan pahunch sakoongaa?" yuvatee ek baar inakee or dekh anguleeke ishaarese inhen raasta dikha neecha mukh kiye apanee raah chalee gayee. lochanadaas sasuraal pahunche.

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