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भक्त शास्त्रीजी शङ्करलाल माहेश्वर की मार्मिक कथा
भक्त शास्त्रीजी शङ्करलाल माहेश्वर की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त शास्त्रीजी शङ्करलाल माहेश्वर (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त शास्त्रीजी शङ्करलाल माहेश्वर]- भक्तमाल


मोरवी शहरकी कीर्ति देश-विदेशमें फैलानेवाले प्रसिद्ध भक्त श्रीशङ्करलाल शास्त्रीका जन्म मोरवी शहरमें संवत् 1899 में हुआ था। वे पंद्रह वर्षकी उम्र में सुन्दर कविताएँ लिख सकते थे।

उन्होंने अपने जीवनमें बहुत-से उत्तम ग्रन्थ लिखे। मोरवीके राजा सर बाघजी बहादुरने हिमालयकी और सारे हिन्दुस्थानकी यात्रामें शास्त्रीजीको साथ रखा था। उसके बाद मोरवीमें 108 भागवत पारायणका यज्ञ हुआ, जिसमें शास्त्रीजीको अग्रस्थान दिया गया। उस समय हिन्दुस्थानमें दो या तीन शतावधानी थे। उनमें एक शास्त्रीजी भी थे। एक दिन एक ब्राह्मणका लड़का उनके घर भिक्षा लेनेके लिये आया घरमें कोई न था। केवल शास्त्रीजी पूजा करनेमें लगे थे। लड़केने देखा कि घरमें कोई नहीं है। इसलिये वह हवेलीमें पड़ी हुई एक तपेलीचुराकर चलता बना। यह बात शास्त्रीजीने देख ली। कुछ दिनों बाद शास्त्रीजीने उस लड़केको बुलाया और प्रेमसे स्नान कराकर नये कपड़े पहनाये एवं घरमें जितने वर्तन चाहिये, उतने सब उसको दे दिये। जाते समय कहा—'भैया! उस दिन मेरे पास माँगते तो मैं दे देता। ऐसा नहीं करना चाहिये।' इससे वह लड़का बहुत लज्जित हुआ और उसका भविष्य-जीवन बहुत सुधर गया।

उनके यहाँ सदा साधु-संत आते और वे बहुत ही प्रेमसे उनकी सेवा करते। मोरवीमें सदा उनकी सुन्दर कथा हुआ करती थी और हजारों आदमी उससे लाभ उठाते थे।

शास्त्रीजी हमेशा दस बजेतक महादेवजीकी पूजामें लगे रहते थे। मोरवीके श्रीकुबेरनाथ महादेव उनके इष्टदेव थे।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt shaastreejee shankaralaal maaheshvara]- Bhaktmaal


moravee shaharakee keerti desha-videshamen phailaanevaale prasiddh bhakt shreeshankaralaal shaastreeka janm moravee shaharamen sanvat 1899 men hua thaa. ve pandrah varshakee umr men sundar kavitaaen likh sakate the.

unhonne apane jeevanamen bahuta-se uttam granth likhe. moraveeke raaja sar baaghajee bahaadurane himaalayakee aur saare hindusthaanakee yaatraamen shaastreejeeko saath rakha thaa. usake baad moraveemen 108 bhaagavat paaraayanaka yajn hua, jisamen shaastreejeeko agrasthaan diya gayaa. us samay hindusthaanamen do ya teen shataavadhaanee the. unamen ek shaastreejee bhee the. ek din ek braahmanaka lada़ka unake ghar bhiksha leneke liye aaya gharamen koee n thaa. keval shaastreejee pooja karanemen lage the. lada़kene dekha ki gharamen koee naheen hai. isaliye vah haveleemen pada़ee huee ek tapeleechuraakar chalata banaa. yah baat shaastreejeene dekh lee. kuchh dinon baad shaastreejeene us lada़keko bulaaya aur premase snaan karaakar naye kapada़e pahanaaye evan gharamen jitane vartan chaahiye, utane sab usako de diye. jaate samay kahaa—'bhaiyaa! us din mere paas maangate to main de detaa. aisa naheen karana chaahiye.' isase vah lada़ka bahut lajjit hua aur usaka bhavishya-jeevan bahut sudhar gayaa.

unake yahaan sada saadhu-sant aate aur ve bahut hee premase unakee seva karate. moraveemen sada unakee sundar katha hua karatee thee aur hajaaron aadamee usase laabh uthaate the.

shaastreejee hamesha das bajetak mahaadevajeekee poojaamen lage rahate the. moraveeke shreekuberanaath mahaadev unake ishtadev the.

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