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भक्त नवीनचन्द्र की मार्मिक कथा
भक्त नवीनचन्द्र की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त नवीनचन्द्र (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त नवीनचन्द्र]- भक्तमाल


वङ्गदेशान्तर्गत जगदीशपुरके पास बलाई गाँवमें एक ब्राह्मण रहते थे। ब्राह्मण बड़े सदाचारी, भगवद्भक्त और सन्तोषी थे। उनका नाम था- शरद ठाकुर। ब्राह्मणी भी बड़ी सुशीला और सती थी। यजमानी बहुत थी। बहुत बड़े-बड़े आदमी उनके शिष्य थे। उस समय जैसे ब्राह्मण पुरोहित सदाचारी और विद्वान् होते थे, वैसे ही उनके शिष्य यजमान भी श्रद्धालु और उदार होते थे। शरद ठाकुरको यजमानोंके यहाँसे बिना ही माँगे काफी धन मिलता था। खर्च था बहुत कम, इससे उत्तरोत्तर उनका वैभव बढ़ता ही जाता था। शरद ठाकुरके एकमात्र पुत्र था नवीनचन्द्र नवीनचन्द्र सरलहृदय था, परंतु माता-पिताका इकलौता पुत्र होनेसे उसपर कोई शासन नहीं था । घरमें धनकी प्रचुरता थी ही। विष्ठापर भिनभिनानेवाली मक्खियोंके समान नवीनके विलास वैभवको देखकर उससे लाभ उठानेके लिये अवारे दुराचारी लड़कोंका दल उसके आसपास आ जुटा । सङ्गका रंग चढ़ता ही है। नवीनपर भी कुसङ्गका असर पड़े बिना न रहा। नवीनचन्द्र भी इसीके अनुसार अनर्थकी राहपर जा चढ़ा। शरद ठाकुर चिन्तामें पड़ गये। उन्होंने पत्नीसे सारा हाल कहा। वह बेचारी भी सोच करने लगी। पर कोई उपाय नहीं सूझ पड़ा। दोनोंकातर होकर भगवान्‌को पुकारने लगे। भगवान् भक्तवत्सल हैं, उन्होंने भक्त शरद ठाकुरकी पुकार सुन ली। कुछ ही दिनों बाद घूमते-फिरते शिवेन्द्र स्वामीनामक एक महात्मा बलाई गाँवमें पधारे और चातुर्मास्यका व्रत लेकर वहीं नदीके तटपर एक पेड़के नीचे ठहर गये।

महात्मा पहुँचे हुए थे। गाँवके नर-नारी दर्शनके लिये आने लगे। वे दिनभर मौन रहकर ध्यान करते केवल एक घंटा मौन खोलते। महात्माजीकी ख्याति दूर दूरतक फैल गयी। आसपासके गाँवोंसे भी दर्शनार्थी आने लगे। शरद ठाकुर भी जाते। एक दिन शरद महात्माजीको नवीनका हाल सुनाकर रोने लगे। महात्माजीने कहा 'घबराओ नहीं। उसके संस्कार बड़े अच्छे हैं, वह बड़ा भक्त होगा। एक बार उसे मेरे पास ले आओ।' शरदको बड़ा आश्वासन मिला।

नवीनको समझा-बुझाकर शरद ठाकुर उसे महात्माजीके पास लाये। महात्माजीने उसके मस्तक और पीठपर हाथ फेरकर कहा- 'बेटा! मेरी बात मानोगे न?' नवीनने मन्त्रमुग्धकी तरह कहा - 'हाँ भगवन् ! अवश्य मानूँगा।' "तो आजसे यहाँ रोज आया करो।'

'आऊँगा, भगवन्!'

'यहीं रहना होगा।'
"रहूँगा-भगवन्।'

• प्रभु-पद-रत भव-विरत पर मेरे पास रहनेवालेको मेरी शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं।'

"करूँगा, भगवन्। बतलाइये, क्या शर्तें है?" 'शराब कभी न पीना, झूठ न बोलना, सूर्योदयसे पहले उठना, सन्ध्या करना, अग्रिहोत्र करना, मा कात्यायनीकी पूजा करना, उनके 'ह्रीं श्रीं कात्यायन्यै स्वाहा' मन्त्रका नित्य विधिपूर्वक जप करना और हविष्यान्न खाना बस, यही आठ शर्तें हैं।'' जो आज्ञा, मैं पूजा और अग्रिहोत्रका सामान ले आऊँ?' 'सामान सब में मँगवा दूंगा!' महात्माजीने नवीनसे यों कहकर शरद ठाकुरको सामान लानेके लिये संकेत किया। उसी समय सारा सामान आ गया। नवीन वहीं रहने लगा। उसी क्षणसे उसका कायापलट हो गया। भगवती कात्यायनीका पूजन- जप, नियमित संयमपूर्ण जीवन और महापुरुषका सत्सङ्ग भगवान्‌की बड़ी कृपासे नवीनचन्द्रको सारी सामग्री सहज ही मिल गयी। कुछ ही दिनोंमें उसका चेहरा शुक्लपक्षके नवीन चन्द्रकी भाँति चमकने लगा।

एक दिन नवीनने कहा- 'भगवन्! आपने इतनी दया की है तो एक और कीजिये। मुझे संन्यासको दीक्षा देकर कृतार्थ कीजिये।' महात्माजी बोले-'बेटा जगदम्बाकी जब जो इच्छा होगी, यही होगा। वे चाहेंगी तो तुम्हें सम्यक् प्रकारसे भोगोंका त्यागी बनाकर अपनी सेवक श्रेणी में ले लेंगी। तुम तो बस, बेटा। उन्होंके हो रहो देखो तुम्हें पता नहीं है। यहाँ सलाङ्ग तुम्हारे दोष, तुम्हारी भोगवासनाएं दब गयी हैं, क्षीण भी हुई हैं, परंतु अभी उनका पूरा नाश नहीं हुआ है। जगदम्बाकी कृपासे जब सच्चे वैराग्यकी आग जलेगी, तब अपने आप ही सारी भोगवासनाका कूड़ा जल जायगा। बेटा! एक म्यानमें दो तलवार नहीं रह सकतीं। इसी प्रकार भोगवासनाके रहते वैराग्य नहीं हो पाता और जबतक वैराग्य नहीं होता, तबतक त्यागके स्वाँगका क्या मूल्य है? भोगोंसे उत्पन्न दुःखोंसे घबराकर कभी-कभी जो विरक्ति होती है, यह 1 असानी वैराग्य नहीं है। न आवेशमें आकर घर छोड़नेका 1 नाम ही सच्चा वैराग्य है। धन-सम्पत्ति, स्त्री-पुत्र, मान बड़ाई आदि भोगोंकी वासना मनमें छिपी रहती है और समय- समयपर बहुत बड़े-बड़े प्रलोभन सामने रखकर | साधकको डिगानेकी चेष्टा करती है। यह तो सत्य है। ही भोग हर हालतमें दुःख ही उपजाते हैं। परंतु माँ | जगदम्बाकी कृपा बिना भोगवासनासे छुटकारा मिलना बहुत ही कठिन है। तुम माँको प्रसन्न करो। माँ प्रसन्न होकर जब जो आज्ञा दें, वही करो। माँ तो प्रसन्न ही हैं। पुत्र कितना ही कुपूत हो, माँका स्नेहभरा हृदय कभी नहीं सूखता। माँकी गोद तो सन्तानके लिये सदा ही खाली है। बस, जब तुम माँकी - एकमात्र माँकी गोद में बैठना चाहोगे, तभी माँ प्रत्यक्ष होकर तुम्हारे सामने आकर तुम्हें अपनी गोद में उठा लेंगी। हृदयसे चिपटा लेंगी। बेटा! धैर्य रखो, माँकी महिमा जानकर माँ-माँ पुकारते रहो। तुम्हारा कल्याण होगा। माँके और बच्चेके बीचमें तीसरेकी जरूरत नहीं है; वे तुम्हारी माँ, तुम उनके बच्चे !'

महात्माजीके वचन सुनकर नवीनका हृदय भर आया, उसके नेत्रोंसे आँसुओंकी धारा बह निकली। वह अनन्यभावसे जगदम्बाकी सेवा करने लगा। शरद ठाकुर और उनकी पत्नी दोनों ही पुत्रके परिवर्तनपर बड़े प्रसन्न थे। भजन करते-करते नवीनका अन्तःकरण पवित्र हो गया। वे भजनकी मूर्ति बन गये। माँका ध्यान करते करते कभी रोते, कभी हँसते, कभी नाचते और कभी माँ-माँ पुकारकर इधर-उधर दौड़ने लगते। बैठ जाते तो अखण्ड समाधि ही लग जाती।

एक दिन प्रातः काल जगदम्बा कात्यायनी स्वयं प्रकट हो गयीं। नवीनने आँखें खोलकर देखा-बड़ा शुभ प्रकाश है। माता मृगराजपर सवार हैं, प्रसन्न मुखमण्डल है, सुन्दर तीन नेत्र हैं, गलेमें सुन्दर हार हैं, भुजाओं में रत्नोंके बाजूबंद और कड़े हैं। सुन्दर जटापर मनोहर मुकुट है। चरणोंमें नूपुर बज रहे हैं। दिव्य रेशमी वस्त्र धारण किये हुए हैं। मस्तकपर अर्धचन्द्र शोभा पा रहा है। करोड़ों चन्द्रमाओंके समान देहकी सुशीतल समुज्ज्वल प्रभा है। दस हाथ हैं-जिनमें खड्ग, खेटक, वज्र, त्रिशूल, बाण, धनुष, पाश, शङ्ख, घण्टा और पद्म सुशोभित हैं। माँके वात्सल्यपूर्ण नेत्रोंसे मधुर स्नेहामृतकी धारा बह ही है। होठोंपर मीठी मुसकान है। मानो सन्तानकोअभय करके अपनी गोदमें लेकर नित्यानन्द प्रदान करनेके लिये आँचल पसारे खड़ी हैं !

नवीन माताकी मुखमुद्रा देखकर निहाल हो गये आनन्दके आँसू बहने लगे। शरीर पुलकित हो गया। वाणी रुक गयी। बहुत देर बाद माताकी प्रेरणासे धीरज आनेपर नवीनने माँका स्तवन किया। माताने उठाकर उन्हें हृदयसे लगा लिया और मस्तकपर हाथ फेरकर कहा- 'बेटा! तू धन्य हो गया। तेरे गुरुजी आज अदृश्य हो जायँगे। तू पूर्वजन्ममें मेरा भक्त था। गुरुजी तेरे पिता थे। वे मेरी कृपाको प्राप्त कर चुके। तू किसी प्रतिबन्धकवश जगत्‌में आया था। गुरुजीको मैंन ही भेजा था। अब तू मेरी कृपासे कृतकृत्य हो गया। मेरी आज्ञासे घर जाकर विवाहकर और जीवनमें मेरी सेवा करता हुआ अन्तमें मेरे सच्चिदानन्दधाममें प्रवेश कर जा तेरी भावी पत्नी भी मेरी सेविका है। तू घरमें रहकर भी जलमें कमलकी भाँति असङ्ग ही रहेगा।' इतना कहकर माता अन्तर्धान हो गयीं।

नवीनने देखा, गुरुजी भी अदृश्य हो गये हैं। नवीन माताके आज्ञानुसार घर चला आया और पिता-माताको सारी कथा कह सुनायी। उनके आनन्दका कोई ठिकाना न था, बड़े उत्साहके साथ तारा नामकी सुशीला कन्यासे नवीनचन्द्रका विवाह हुआ। तारा और नवीन दोनों मातृ-मन्त्रमें दीक्षित होकर जीवनभर माँका भजन करते रहे।



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vangadeshaantargat jagadeeshapurake paas balaaee gaanvamen ek braahman rahate the. braahman bada़e sadaachaaree, bhagavadbhakt aur santoshee the. unaka naam thaa- sharad thaakura. braahmanee bhee bada़ee susheela aur satee thee. yajamaanee bahut thee. bahut bada़e-bada़e aadamee unake shishy the. us samay jaise braahman purohit sadaachaaree aur vidvaan hote the, vaise hee unake shishy yajamaan bhee shraddhaalu aur udaar hote the. sharad thaakurako yajamaanonke yahaanse bina hee maange kaaphee dhan milata thaa. kharch tha bahut kam, isase uttarottar unaka vaibhav badha़ta hee jaata thaa. sharad thaakurake ekamaatr putr tha naveenachandr naveenachandr saralahriday tha, parantu maataa-pitaaka ikalauta putr honese usapar koee shaasan naheen tha . gharamen dhanakee prachurata thee hee. vishthaapar bhinabhinaanevaalee makkhiyonke samaan naveenake vilaas vaibhavako dekhakar usase laabh uthaaneke liye avaare duraachaaree lada़konka dal usake aasapaas a juta . sangaka rang chadha़ta hee hai. naveenapar bhee kusangaka asar pada़e bina n rahaa. naveenachandr bhee iseeke anusaar anarthakee raahapar ja chadha़aa. sharad thaakur chintaamen pada़ gaye. unhonne patneese saara haal kahaa. vah bechaaree bhee soch karane lagee. par koee upaay naheen soojh pada़aa. dononkaatar hokar bhagavaan‌ko pukaarane lage. bhagavaan bhaktavatsal hain, unhonne bhakt sharad thaakurakee pukaar sun lee. kuchh hee dinon baad ghoomate-phirate shivendr svaameenaamak ek mahaatma balaaee gaanvamen padhaare aur chaaturmaasyaka vrat lekar vaheen nadeeke tatapar ek peड़ke neeche thahar gaye.

mahaatma pahunche hue the. gaanvake nara-naaree darshanake liye aane lage. ve dinabhar maun rahakar dhyaan karate keval ek ghanta maun kholate. mahaatmaajeekee khyaati door dooratak phail gayee. aasapaasake gaanvonse bhee darshanaarthee aane lage. sharad thaakur bhee jaate. ek din sharad mahaatmaajeeko naveenaka haal sunaakar rone lage. mahaatmaajeene kaha 'ghabaraao naheen. usake sanskaar bada़e achchhe hain, vah bada़a bhakt hogaa. ek baar use mere paas le aao.' sharadako bada़a aashvaasan milaa.

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• prabhu-pada-rat bhava-virat par mere paas rahanevaaleko meree sharten pooree karanee pada़tee hain.'

"karoonga, bhagavan. batalaaiye, kya sharten hai?" 'sharaab kabhee n peena, jhooth n bolana, sooryodayase pahale uthana, sandhya karana, agrihotr karana, ma kaatyaayaneekee pooja karana, unake 'hreen shreen kaatyaayanyai svaahaa' mantraka nity vidhipoorvak jap karana aur havishyaann khaana bas, yahee aath sharten hain.'' jo aajna, main pooja aur agrihotraka saamaan le aaoon?' 'saamaan sab men mangava doongaa!' mahaatmaajeene naveenase yon kahakar sharad thaakurako saamaan laaneke liye sanket kiyaa. usee samay saara saamaan a gayaa. naveen vaheen rahane lagaa. usee kshanase usaka kaayaapalat ho gayaa. bhagavatee kaatyaayaneeka poojana- jap, niyamit sanyamapoorn jeevan aur mahaapurushaka satsang bhagavaan‌kee bada़ee kripaase naveenachandrako saaree saamagree sahaj hee mil gayee. kuchh hee dinonmen usaka chehara shuklapakshake naveen chandrakee bhaanti chamakane lagaa.

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naveenane dekha, gurujee bhee adrishy ho gaye hain. naveen maataake aajnaanusaar ghar chala aaya aur pitaa-maataako saaree katha kah sunaayee. unake aanandaka koee thikaana n tha, bada़e utsaahake saath taara naamakee susheela kanyaase naveenachandraka vivaah huaa. taara aur naveen donon maatri-mantramen deekshit hokar jeevanabhar maanka bhajan karate rahe.

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बांके बिहारी की देख छटा,
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वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
रंगीलो राधावल्लभ लाल, जै जै जै श्री
विहरत संग लाडली बाल, जै जै जै श्री
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नटवर नागर नंदा, भजो रे मन गोविंदा
शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
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करते है हम शुरु आज का काम प्रभु,
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
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तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
यह मेरी अर्जी है,
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जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
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कान्हा की दीवानी बन जाउंगी,
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यह तो जाने दुनिया सारी है
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हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
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