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राजा प्रतापरुद्र की मार्मिक कथा
राजा प्रतापरुद्र की अधबुत कहानी - Full Story of राजा प्रतापरुद्र (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [राजा प्रतापरुद्र]- भक्तमाल


विद्वज्जन-प्रतिपालक राजा प्रतापरुद्र उत्कल देशके राजा थे। इनके पिताका नाम पुरुषोत्तमदेव और माताका नाम पद्मावती था। ये बचपनसे ही अत्यन्त विद्याप्रेमी थे। विद्याभ्यासमें रहकर इन्होंने विविध शास्त्रोंका पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था। ये प्रजाका अपने पुत्रकी तरह पालन करते थे। युद्धविद्यामें भी ये बड़े निपुण थे। सेतुबन्धतक इन्होंने अपना अधिकार-विस्तार कर लिया था। विजयनगर राज्य भी इन्हींके हाथमें था। पुरुषोत्तमतीर्थ पुरीधामके ये ही अधिकारी थे।

भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु जब पुरीधाममें थे, तब उनके दर्शन करनेकी उत्कण्ठाको लेकर राजा वहाँ आये।इन्होंने प्रभुके दर्शनार्थ प्रार्थना की; किंतु प्रभुने यह कहकर कि 'मैं विषयी राजाओं, महाराजाओं और जमींदारोंसे सर्वथा नहीं मिलता' उनकी प्रार्थना ठुकरा दी। प्रभुकी अस्वीकृति सुनकर राजा अत्यन्त दुःखी हुए। उनकी प्रभु दर्शनोत्कण्ठा उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। अन्तमें अत्यन्त निराश हो, उन्होंने यही निश्चय किया कि श्रीचैतन्य - चरणदर्शनोंकी आशामें ही मैं यहाँ प्राणोंको त्याग दूँगा । राजाके इस निश्चयको सुनकर राय रामानन्द प्रभृति भक्तोंको बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने महाप्रभु श्रीचैतन्यके सम्मुख राजाका सङ्कल्प जनाया, पर वे अपने निश्चयसे अडिग रहे।

सत्य ही है- भगवद्विमुख, विषयासक्त पुरुष उच्चजातीयएवं संसारके अन्य गुणोंसे सम्पन्न होनेपर भी भक्तोंके | लिये तो उपरतिके ही पात्र हैं

आखिर राय रामानन्द आदि भक्त श्रेष्ठोंने यही निश्चय किया कि रथ-यात्राके शुभ अवसरपर जब महाप्रभु भावोन्मत्त एवं रसाविष्ट हो श्रीहरि नाम संकीर्तन करते हुए निकलें, उस समय राजा श्रीरासपञ्चाध्यायीका एक श्लोक उच्चारण करें। जिसकी जिह्वापर भगवान्‌का निर्मल यश होगा, उसे प्रेमी प्रभु अवश्य ही हृदयसे लगा लेंगे। हुआ भी यही - ज्यों ही प्रभु श्रीहरि-नाम-कीर्तनमें मत्त हो नृत्य करते निकले, राजाने अत्यन्त सुमधुर स्वरमें श्रीमद्भागवतके इस श्लोकका गान आरम्भ किया

तव कथामृतं तप्तजीवनं

कविभिरीडितं कल्मषापहम् ।

श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं

भुवि गृणन्ति ये भूरिदा जनाः ॥

प्रभुने ज्यों ही इसे सुना, वे दौड़कर राजासे लिपट गये। महाभावस्वरूप प्रभुके पावन स्पर्शसे ही राजा भगवत् प्रेमसम्पदासे युक्त हो गये और प्रभुके साथ ही उन्मत्त होकर नृत्य करने लगे। धन्य है ऐसे त्रिजगपावनकर्त्ता महापुरुषोंको एवं उनके सङ्गलाभको प्राप्त करनेवाले अनन्त सौभाग्यसीम जीवोंको। तभीसे राजा प्रतापरुद्र महान् भक्त हो गये और श्रीचैतन्यके महान् अनुगत होकर जीवन व्यतीत करने लगे।



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vidvajjana-pratipaalak raaja prataaparudr utkal deshake raaja the. inake pitaaka naam purushottamadev aur maataaka naam padmaavatee thaa. ye bachapanase hee atyant vidyaapremee the. vidyaabhyaasamen rahakar inhonne vividh shaastronka paryaapt jnaan praapt kar liya thaa. ye prajaaka apane putrakee tarah paalan karate the. yuddhavidyaamen bhee ye bada़e nipun the. setubandhatak inhonne apana adhikaara-vistaar kar liya thaa. vijayanagar raajy bhee inheenke haathamen thaa. purushottamateerth pureedhaamake ye hee adhikaaree the.

bhagavaan shreechaitany mahaaprabhu jab pureedhaamamen the, tab unake darshan karanekee utkanthaako lekar raaja vahaan aaye.inhonne prabhuke darshanaarth praarthana kee; kintu prabhune yah kahakar ki 'main vishayee raajaaon, mahaaraajaaon aur jameendaaronse sarvatha naheen milataa' unakee praarthana thukara dee. prabhukee asveekriti sunakar raaja atyant duhkhee hue. unakee prabhu darshanotkantha uttarottar badha़ne lagee. antamen atyant niraash ho, unhonne yahee nishchay kiya ki shreechaitany - charanadarshanonkee aashaamen hee main yahaan praanonko tyaag doonga . raajaake is nishchayako sunakar raay raamaanand prabhriti bhaktonko bada़ee chinta huee. unhonne mahaaprabhu shreechaitanyake sammukh raajaaka sankalp janaaya, par ve apane nishchayase adig rahe.

saty hee hai- bhagavadvimukh, vishayaasakt purush uchchajaateeyaevan sansaarake any gunonse sampann honepar bhee bhaktonke | liye to uparatike hee paatr hain

aakhir raay raamaanand aadi bhakt shreshthonne yahee nishchay kiya ki ratha-yaatraake shubh avasarapar jab mahaaprabhu bhaavonmatt evan rasaavisht ho shreehari naam sankeertan karate hue nikalen, us samay raaja shreeraasapanchaadhyaayeeka ek shlok uchchaaran karen. jisakee jihvaapar bhagavaan‌ka nirmal yash hoga, use premee prabhu avashy hee hridayase laga lenge. hua bhee yahee - jyon hee prabhu shreehari-naama-keertanamen matt ho nrity karate nikale, raajaane atyant sumadhur svaramen shreemadbhaagavatake is shlokaka gaan aarambh kiyaa

tav kathaamritan taptajeevanan

kavibhireeditan kalmashaapaham .

shravanamangalan shreemadaatatan

bhuvi grinanti ye bhoorida janaah ..

prabhune jyon hee ise suna, ve dauda़kar raajaase lipat gaye. mahaabhaavasvaroop prabhuke paavan sparshase hee raaja bhagavat premasampadaase yukt ho gaye aur prabhuke saath hee unmatt hokar nrity karane lage. dhany hai aise trijagapaavanakartta mahaapurushonko evan unake sangalaabhako praapt karanevaale anant saubhaagyaseem jeevonko. tabheese raaja prataaparudr mahaan bhakt ho gaye aur shreechaitanyake mahaan anugat hokar jeevan vyateet karane lage.

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