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श्रीभक्तिसार (तिरुमडिसै आळवार) की मार्मिक कथा
श्रीभक्तिसार (तिरुमडिसै आळवार) की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीभक्तिसार (तिरुमडिसै आळवार) (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीभक्तिसार (तिरुमडिसै आळवार)]- भक्तमाल


दक्षिण में तिरुमडिसै (महीसरपुर) नामका एक प्रसिद्ध तीर्थ है, वहाँ कई महर्षियोंने तपस्या की है। इन्हीं तपस्वियोंमें भार्गव नामक एक महान् विष्णुभक्त भी हो गये हैं। इनकी पत्नीका नाम कनकावती था, जो इनकी तपस्यामें बड़ी सहायता करती थी। इन्हें भक्तिसार नामका एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ। तिरुमडिमेंसे उत्पन्न होनेके कारण उन्हें लोग तिरुमडिस आळवार कहने लगे। इनके माता-पिताने इनको सरकण्डोंके वनमें छोड़ दिया था। कहते हैं कि स्वयं श्रीमहालक्ष्मीने इन्हें अपना दुग्ध पान कराया। दैवयोगसे तिरुवाडन् नामका व्याध और उसकी पत्नी पङ्कजवल्ली दोनों उस स्थानमें सरकण्डे काटनेके लिये उधर आ निकले, उनकी दृष्टि उस बालकपर पड़ी और उन्होंने उसे भगवान्‌को देन समझकर उठा लिया और अपने घर ले आये। उनके कोई सन्तान नहीं थी, इसीलिये उन्होंने उस बालकको अपने हीबालकके रूपमें पाला-पोसा और उसका नाम 'भक्तिसार' रखा। इस बालकमें यह विशेषता थी कि वह किसी भी स्त्रीका स्तनपान नहीं करता था। एक वृद्ध मनुष्यने इस बालककी आकृति देखकर पहचान लिया कि यह कोई असाधारण बालक है और उसे गायका दूध पिलाने | लगा। बालकके पीनेके बाद जो दूध कटोरेमें बचा रहता, उसे यह वृद्ध मनुष्य और उसकी पत्नी दोनों पी जाते । इस प्रसादके प्रभावसे उन्हें भी कनिकन्न नामका एक पुत्र हुआ। ये कनिकन्न भक्तिसारके प्रधान शिष्य हुए।

भक्तिसार अलौकिक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे। उन्होंने थोड़ी ही अवस्थामें प्रायः सभी धार्मिक ग्रन्थ पढ़ डाले और वेदान्तदर्शन, मीमांसादर्शन, बौद्धदर्शन एवं जैनदर्शन सभीका अभ्यास किया। इन्हें भगवान् श्रीनारायणकी शरणसे ही परमानन्दकी प्राप्ति हुई। ये भगवान्से इस प्रकार प्रार्थना किया करते – 'प्रभो! मुझे इस जन्म मरणकेचकरसे छुड़ाओ। मैंने अपनी इच्छाको तुम्हारी इच्छाके | अन्दर विलीन कर दिया है, मेरा चित्त सदा तुम्हारे | चरणोंका ध्यान किया करता है। तुम्हीं आकाश हो, तुम्हीं। पृथ्वी हो, तुम्हीं पवन हो और तुम्हीं मेरै स्वामी हो। तुम्हीं मेरे पिता हो, तुम्हीं मेरी माता हो और तुम्हाँ रक्षक हो। तुम्हीं शब्द हो और तुम्हीं उसके अर्थ हो। तुम वाणी और मन दोनोंके परे हो। यह जगत् तुम्हारे ही अन्दर स्थित है और तुम्हारे ही अन्दर लीन हो जाता है। तुम्हारे ही अन्दर सारे भूत-प्राणी उत्पन्न होते हैं, तुम्हारे ही अन्दर चलते-फिरते हैं और फिर तुम्हारे ही अन्दर लीन हो जाते हैं। दूधमें घीकी भाँति तुम सर्वत्र विद्यमान हो।' गजेन्द्र सरोवर के तटपर इन्होंने कई वर्षतक ध्यानयोगका अभ्यास किया। उन्हीं दिनों एक दिन देवता इनके सामने आये और इनसे कहा कि 'वर माँगो' इन्होंने देवताओंसे पूछा, 'क्या आप मुक्ति दे सकते हैं ?" देवताओंने कहा, 'नहीं!' 'तो क्या आप किसीकी मृत्युको टाल सकते हैं ?"

देवताओंने फिर कहा 'नहीं।' इसपर इन्होंने कहा- 'फिर
आप क्या कर सकते हैं ?' इससे देवता भक्तिसारसे रुष्टहोकर चले गये, परंतु वे इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके।

इस प्रकार साधकोंके साधनमें विघ्न डालनेके लिये बहुत बार देवता आया करते हैं। साधकको चाहिये कि उनकी कुछ भी परवा न करके भक्तिसारकी भाँति अपने लक्ष्यपर सुदृढ़ रहे। इनके अन्दर अहङ्कारका लेश भी नहीं था। इनके बनाये हुए पदोंके कारण जब इनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी, तब इन्होंने एक दिन अपने पदोंकी सारी पोथियाँ कावेरी नदीमें डाल दीं। और सब पुस्तकें तो नदीके प्रवाहमें वह गयीं, केवल दो पुस्तकें बच रहीं। कहते हैं, ये पुस्तकें प्रवाहके साथ न बहकर अपने-आप किनारेकी ओर लौट | आयीं। उनके कुछ उपदेशोंका सार नीचे दिया जाता है— 'मुक्ति भगवान्की कृपासे ही प्राप्त होती है। भगवान्‌की कृपाको प्राप्तकर मनुष्य अजेय हो जाता है। भगवत्प्रेम ही मनुष्यके लिये सबसे बड़ी सम्पत्ति है। भगवान् ही वेदोंके सार हैं। पूजा और स्तुतिके योग्य एकमात्र भगवान् नारायण ही हैं। वे ही संसारके आदिकारण हैं। ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान- तीनों वे ही हैं। नारायण ही सब कुछ हैं। नारायण ही हमारे सर्वस्व हैं।'



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dakshin men tirumadisai (maheesarapura) naamaka ek prasiddh teerth hai, vahaan kaee maharshiyonne tapasya kee hai. inheen tapasviyonmen bhaargav naamak ek mahaan vishnubhakt bhee ho gaye hain. inakee patneeka naam kanakaavatee tha, jo inakee tapasyaamen bada़ee sahaayata karatee thee. inhen bhaktisaar naamaka ek putraratn praapt huaa. tirumadimense utpann honeke kaaran unhen log tirumadis aalavaar kahane lage. inake maataa-pitaane inako sarakandonke vanamen chhoda़ diya thaa. kahate hain ki svayan shreemahaalakshmeene inhen apana dugdh paan karaayaa. daivayogase tiruvaadan naamaka vyaadh aur usakee patnee pankajavallee donon us sthaanamen sarakande kaataneke liye udhar a nikale, unakee drishti us baalakapar pada़ee aur unhonne use bhagavaan‌ko den samajhakar utha liya aur apane ghar le aaye. unake koee santaan naheen thee, iseeliye unhonne us baalakako apane heebaalakake roopamen paalaa-posa aur usaka naam 'bhaktisaara' rakhaa. is baalakamen yah visheshata thee ki vah kisee bhee streeka stanapaan naheen karata thaa. ek vriddh manushyane is baalakakee aakriti dekhakar pahachaan liya ki yah koee asaadhaaran baalak hai aur use gaayaka doodh pilaane | lagaa. baalakake peeneke baad jo doodh katoremen bacha rahata, use yah vriddh manushy aur usakee patnee donon pee jaate . is prasaadake prabhaavase unhen bhee kanikann naamaka ek putr huaa. ye kanikann bhaktisaarake pradhaan shishy hue.

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devataaonne phir kaha 'naheen.' isapar inhonne kahaa- 'phira
aap kya kar sakate hain ?' isase devata bhaktisaarase rushtahokar chale gaye, parantu ve inaka kuchh bhee naheen bigaada़ sake.

is prakaar saadhakonke saadhanamen vighn daalaneke liye bahut baar devata aaya karate hain. saadhakako chaahiye ki unakee kuchh bhee parava n karake bhaktisaarakee bhaanti apane lakshyapar sudridha़ rahe. inake andar ahankaaraka lesh bhee naheen thaa. inake banaaye hue padonke kaaran jab inakee prasiddhi badha़ne lagee, tab inhonne ek din apane padonkee saaree pothiyaan kaaveree nadeemen daal deen. aur sab pustaken to nadeeke pravaahamen vah gayeen, keval do pustaken bach raheen. kahate hain, ye pustaken pravaahake saath n bahakar apane-aap kinaarekee or laut | aayeen. unake kuchh upadeshonka saar neeche diya jaata hai— 'mukti bhagavaankee kripaase hee praapt hotee hai. bhagavaan‌kee kripaako praaptakar manushy ajey ho jaata hai. bhagavatprem hee manushyake liye sabase bada़ee sampatti hai. bhagavaan hee vedonke saar hain. pooja aur stutike yogy ekamaatr bhagavaan naaraayan hee hain. ve hee sansaarake aadikaaran hain. jnaata, jney aur jnaana- teenon ve hee hain. naaraayan hee sab kuchh hain. naaraayan hee hamaare sarvasv hain.'

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