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श्रीरामचरितमानसके नित्य पाठका सुफल

जुलाई सन् १९६७में युवराजदत्त इण्टर कॉलेज ओपलके छात्रावास अधीक्षक शुक्लजीको जब पता चला कि छात्रावासमें कोई बहुत छोटा, दुबला-पतला नौवीं कक्षाका विद्यार्थी आया है, तो वे अपनी जिज्ञासा रोक न सके और उन्होंने मुझको बुलवाया। उन्होंने प्रश्न किया- 'क्या नाम है तुम्हारा?' हर्षवर्धन। 'कहाँका राजा था ?' कन्नौजका 'कबसे कबतक राज्य किया ?" 'सन् ६०६ ई० से ६४७ ई० तक' 'हर्षवर्धनके बारेमें तुम और क्या जानते हो ?' मुझे जो कुछ भी ज्ञात था, मैंने आद्यन्त बताया। वे अभिभूत हुए। अगला प्रश्न था— पाठ्यक्रमके अतिरिक्त तुम्हें कुछ और भी मालूम है? मैंने कहा जी मालूम है। कभी श्रीरामचरितमानस पढ़ा है?' प्रतिदिन पड़ता हूँ उस समय मुझे अपने धर्मनिष्ठ, पूज्य पिताकी अनुकम्पासे श्रीरामचरितमानसका प्रथम मास पारायण कण्ठस्थ था। शुक्लजीने कहा, 'कोई छन्द सुना सकते हो ?' मैंने पूछा, 'छोटा सुनाऊँ या बड़ा' शुक्लजीने आदेशित किया पहले छोटा सुनाओ। मैंने मानसका पहला छन्द निवेदित किया मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।

शुक्लजी भावविभोर हो गये। बोले, 'अब बड़ा सुनाओ।' मैंने रामजन्मका छन्द सुनायाभए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी। छन्द पूरा होते ही शुक्लजी गद्गद भावसे अपनीकुर्सीसे उठे और मुझको अपनी बाँहोंमें भर लिया। अगला प्रश्न था- 'कौन-कौनसे विषय लिये हैं?' मैंने कहा पण्डितजी! विषय तो मुझे मालूम नहीं, आजही मेरा नाम लिखा गया है। कृषिवर्गमें मेरा प्रवेश हुआ है इतना सुनते ही शुक्लजीकी सारी प्रसन्नता तिरोहित हो गयी भावावेशमें उत्तेजित होकर वे बोले-'किस मूर्खने तुम्हारा नाम कृषिवर्ग में लिखवाया है?" मैं अपराधबोधसे ग्रसित हो गया था बड़ी कठिनाईसे बोल पाया 'पिताजीने' शुक्लजीने कहा-'जब तुम्हारे पिताजी आयें, तो मुझसे मिलवाना।'

पिताजी प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य थे, उच्च शिक्षा विषयमें उन्हें ज्ञान कम था। हमारे जिस परिवारजनपर विश्वास किया गया था, उसकी दुर्भावनावश मेरा नाम कृषिमें लिखा गया था और कॉलेज वह अच्छा बताया गया, जहाँ कृषिविज्ञान केवल हाईस्कूल तक था, ताकि इण्टरमीडिएटतक आते-आते मैं स्वतः साहित्यिक वर्गमें आ जाऊँ ।

मैं जीवनमें पहली बार घरसे बाहर निकला था। दो दिन, दो रात मैंने छात्रावासमें ऐसे गुजारे, जैसे माता सीताने अशोकवाटिकामें तीसरे दिनतक रामनामका स्मरण करते-करते पिताजी आ गये। मैंने वार्डन महोदयके संदेशसे पिताजीको अवगत कराया। वे तुरंत शुक्लजीसे मिलनेके लिये पहुँच गये। सामान्य शिष्टाचारके उपरान्त शुक्लजीने कहा-'पण्डितजी ! आपने इस बच्चेका प्रवेश कृषिवर्ग में करा दिया।' पिताजीने कहा-'शुक्लजी! अब आप लड़केके संरक्षक हैं, जैसा चाहें, पढ़ायें।' शुक्लजीने अपना मन्तव्य स्पष्ट कर दिया--लड़केको जीवविज्ञान पढ़ाना है और डॉक्टर बनाना है। अगले दिन शुक्लजीने स्वयं मेरी कक्षामें जाकर मेरा स्थानान्तरणयथेष्ट वर्गमें करा दिया और मेरे चिकित्सक बननेकी नींवका सूत्रपात हो गया। समय आनेपर मैंने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय लखनऊसे शिक्षा ग्रहण की और वर्तमानमें तहसील महोली जनपद सीतापुर उ०प्र० में विगत ४१ वर्षोंसे चिकित्सा सेवा कर रहा हूँ।रामदासाधिपति श्रीहनुमन्तलाल मेरे आराध्य हैंऔर यथासम्भव मैं उन्हींके द्वारा निर्देशित मार्गकाअनुसरण करता हूँ।

मानव जीवनमें हानि-लाभ, सुख-दुःख, यश अपयश तो आते-जाते ही रहते हैं, लेकिन मुझे दृढ़ विश्वास रहता है कि मेरा कोई काम बिगड़ेगा नहीं, यही आस्तिकताका सुफल है। मुझे इस बातका पूर्ण विश्वास है कि मेरी समस्त उपलब्धियाँ श्रीरामचरितमानसका ही कृपाप्रसाद हैं

[ डॉ० श्रीहर्षवर्धनजी शुक्ल ]



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shreeraamacharitamaanasake nity paathaka suphala

julaaee san 1967men yuvaraajadatt intar kaॉlej opalake chhaatraavaas adheekshak shuklajeeko jab pata chala ki chhaatraavaasamen koee bahut chhota, dubalaa-patala nauveen kakshaaka vidyaarthee aaya hai, to ve apanee jijnaasa rok n sake aur unhonne mujhako bulavaayaa. unhonne prashn kiyaa- 'kya naam hai tumhaaraa?' harshavardhana. 'kahaanka raaja tha ?' kannaujaka 'kabase kabatak raajy kiya ?" 'san 606 ee0 se 647 ee0 taka' 'harshavardhanake baaremen tum aur kya jaanate ho ?' mujhe jo kuchh bhee jnaat tha, mainne aadyant bataayaa. ve abhibhoot hue. agala prashn thaa— paathyakramake atirikt tumhen kuchh aur bhee maaloom hai? mainne kaha jee maaloom hai. kabhee shreeraamacharitamaanas paढ़a hai?' pratidin paड़ta hoon us samay mujhe apane dharmanishth, poojy pitaakee anukampaase shreeraamacharitamaanasaka pratham maas paaraayan kanthasth thaa. shuklajeene kaha, 'koee chhand suna sakate ho ?' mainne poochha, 'chhota sunaaoon ya bada़aa' shuklajeene aadeshit kiya pahale chhota sunaao. mainne maanasaka pahala chhand nivedit kiya mangal karani kalimal harani tulasee katha raghunaath kee.

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maanav jeevanamen haani-laabh, sukha-duhkh, yash apayash to aate-jaate hee rahate hain, lekin mujhe dridha़ vishvaas rahata hai ki mera koee kaam bigada़ega naheen, yahee aastikataaka suphal hai. mujhe is baataka poorn vishvaas hai ki meree samast upalabdhiyaan shreeraamacharitamaanasaka hee kripaaprasaad hain

[ daॉ0 shreeharshavardhanajee shukl ]

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श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम
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