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परम शिवभक्ता लल्लेश्वरीजी की मार्मिक कथा
परम शिवभक्ता लल्लेश्वरीजी की अधबुत कहानी - Full Story of परम शिवभक्ता लल्लेश्वरीजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [परम शिवभक्ता लल्लेश्वरीजी]- भक्तमाल


लल्लेश्वरीने आत्माके स्तरपर शिवको उपासना की। वे सत्यके शिवरूपकी मधुर गायिका थीं। उन्होंने आत्मतत्त्वके विवेचन-माधुर्यसे केवल चौदहवीं सदीके कश्मीरको ही नहीं, एशिया के बहुत बड़े भूमिभाग—अरब, फारस आदि देशोंको भी समलङ्कृत किया। उनका जीवन परम पवित्र और सर्वथा आनन्दमय था, रसमय था। अभी चालीस-पचास साल पहले प्रसिद्ध यूरोपीय विद्वान् डाक्टर स्टाइन, सर ग्रियर्सन और सर टेम्पलके उद्योगों से उनकी मधुर वाणीका अनुवाद आंग्ल जर्मन, फ्रेंच आदि यूरोपीय भाषाओं में भी हुआ है। लल्लेश्वरी प्रेमको प्रतीक थीं उन्होंने शुद्ध, सनातन और नित्य सच्चिदानन्दतत्त्वके प्रति प्रगाढ़ और अदल भक्तिका परिचय दिया। कश्मीरमें तो चौदहवीं सदीसे आजतक उनकी दिव्य वाणी भाटों और चारणोंकी रसनापर सुरक्षित चली आ रही है।

उनका जन्म सन् 19343 या 47 के लगभग कश्मीरमें हुआ था। उस समय कश्मीर में यवनोंको प्रभुता थी। चारों ओर राजनीतिक उथल-पुथलकी धूम थी। ऐसे कठिन समयमें दिव्य गायिका साध्वी, तपस्विनीने पामपुरके निकट एक में अपनी जीवन ज्योति बिखेरी। वे ब्राह्मणकन्या थीं। बारह सालकी अवस्थामें उनका विवाह कर दिया गया। उनका ससुरालका जीवन अत्यन्त कष्टप्रद था, सौतेली सासने उनको सताना आरम्भ किया। सास कटोरे में पहले एक बड़े-से गोल पत्थरपर भात परोसकर देती थी तपस्याकी मूर्ति वधू आधे पेट खाकर सन्तोष करती। वह और भी अनेक यातनाओंसे पीड़ित करती थी। पर क्षमाशीला लल्लेश्वरीने कभी उसके विरोधमें एक शब्द भी नहीं कहा। भोग और तृष्णासे कोसों दूर रहकर उन्होंने ईश्वर चिन्तन और पूजनको ही अपना सर्वस्व माना। एक समय देव पूजाके व्याजसे घरमें पशुबलि होनेवाली थी। पद्मा (लल्लेश्वरी) नदीके तटपर बर्तन साफ कर रही थी कि एक पड़ोसिननेव्यङ्ग किया कि 'आज तो पाँचों अँगुलियाँ घीमेँ हैं! पद्माने कहा- 'बकरा मरे या भेड़, मुझे तो गोल पत्थरसे ही काम है।' दैवयोगसे उन्होंने पड़ोसिनको सारी बातें बता दीं, उनका ससुर वहाँ खड़ा था ससुरने अपनी पत्नीको फटकारा; पर इसका परिणाम यह हुआ कि वे अधिकाधिक सतायी जाने लगीं। माके कहनेपर बेटा (पति) भी विरोधी हो चला। 'वह डाकिनी है, जादूगरनी है, आधी रातको सिंहकी पोठपर बैठकर नर मांस खाने जाती है' – इन बातोंसे, मिथ्या प्रचारोंसे उनका जीवन यातनामय हो उठा। उन्होंने सीमाओंको तोड़कर असीमसे मिलनेकी ठान ली। पूर्वजन्मके शुभ संस्कारों और इस जन्मके तपोबलके फलस्वरूप उनके आत्माका दीपक प्रज्वलित हो उठा। वे गलियों और बाजारोंमें शिव-सम्बन्धी गीत गाने लगीं। कोई पत्थर फेंकता, कोई पगली कहता, कोई छेड़ता पर ये तो शिवतत्त्वकी मधुर साधनामें मस्त रहती थीं। उनका द्वैतभाव मिट गया, समस्त संसार और प्राणिमात्रमें उन्हें शिव परिव्याप्त दीख पड़े। वे परमहंस वृत्तिसे अवधूतकी तरह घूमने लगन भोजनको चिन्ता थी, न वस्त्रको इच्छा थी; कोई दो टुकड़े डाल देता तो शिवका प्रसाद समझकर ग्रहण कर लेतीं।

उनपर सूफी-उपासनाका भी बड़ा प्रभाव पड़ा था। वे नंगी नाचती-फिरती थीं। वे कहा करती थीं कि पुरुष तो कोई है ही नहीं। एक बार उन्होंने बाजारमें प्रसिद्ध सूफी संत शाह हमदानको देखकर कहा- 'पुरुष है, पुरुष है।' और भागकर वे एक धधकते तंदूरमें कूद पड़ीं। शाहसाहबने वहाँ पहुँचकर आवाहन किया तो दिव्य वस्त्रभूषण पहने तंदूरसे बाहर आ गय दोनोंने एक दूसरेको पूर्णरूपसे प्रभावित किया।

केवल शुद्ध आत्मज्ञानिनी ही नहीं, शिवकी रूपामृतलहरीमें भक्तिगङ्गा खान करनेवाली भक्का भी
थीं, कश्मीरमें उनकी शिव भक्ति अत्यन्त प्रख्यात है।उनकी आत्मोपासना उच्चकोटिकी थी, उनकी वाणी
सर्वथा दिव्य और सिद्ध थी। एक बार उनके गुरुदेव उपदेश दे रहे थे, शिष्योंकी मण्डली बैठी हुई थी। गुरुजीने प्रश्न किये - सर्वश्रेष्ठ प्रकाश कौन है, जगत् विख्यात तीर्थ कौन है, सर्वोत्तम सम्बन्धी कौन है, अनन्त सुखका साधन क्या है? कुछ लोगोंने उत्तर तो दिये, पर वे समीचीन न थे; लल्लेश्वरीने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया - आत्मज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ प्रकाश है। आत्मामें लीन रहना ही परम पवित्र तीर्थ है। ईश्वर ही सर्वोत्तम बन्धु है ईश्वरमय होना ही परम सुख है।

उनकी समता तथा सहनशीलता देखिये; वे कहती हैं- लोग मुझे गाली दें या दुःखदायी वचन कहें; जो जिसको अच्छा लगे सो कहे-करे; कोई फूलोंसे मेरी पूजा करे तो किया करे; मैं विमल न दुःख मानूँ, न सुख। कोई मुझे हजार गाली दे - यदि मैं शङ्करभक्ता हूँ तो मेरे मनमें खेद न होगा। दर्पणपर श्वासका मल लगनेसे भला, उसका क्या बिगड़ेगा।'

उनका दार्शनिक, यौगिक ज्ञान भी अत्यन्त उन्नत था। और विचित्रता तो यह है कि उनमें उपासनाका माधुर्य इतनी बहुलतासे मिलता है कि नयनोंमें प्रेममयी लल्लेश्वरीका अभिनव होने लगता है। वे भगवान् सदा, विनम्रतापूर्वक प्रार्थना किया करती थीं कि 'तुम शिव, केशव, ब्रह्मा जो कुछ भी, वह यह हो— मेरे जन्म-मरणके दुःखका अन्त कर दो। मैं तुम्हें अपने ही भीतर पाकर आनन्दमय हो गयी।' वे विश्वासपूर्वक कहा करती थीं कि 'समुद्र में मैं कच्चे धागेसे नाव खींच रही हूँ; कहीं मेरे प्रभु सुन लेंगेतो पार लगा देंगे।'

वे आजीवन यही सीख देती रहीं कि 'सर्वव्यापीकी खोज हो ही किस तरह सकती है। वह सर्वत्र है। शिवने कुञ्ज-कुञ्जमें जाल फैलाकर जीवोंको उलझा रखा है, वह तो आत्मामें ही है। उसकी खोज बाहर नहीं-भीतर हो सकती है। शिव ही मातारूपमें दूध पिलाता है, भार्यारूप धारणकर विलासकी अनुभूति कराता है, मायारूपसे जीवको मोहित करता है, इस मायावी शिवका ज्ञान गुरु ही करा सकते हैं।'

उनकी योगानुभूतिने अपने समकालीन जगत्से कहा कि 'मैंने अपने-आपमें शिवकी व्याप्ति पायी, शिवरूपी अमृत-सरोवरमें मैंने अपने-आपको लय कर दिया, मैं आत्मस्थ हो गयी। मैं प्रेमाग्रिमें उसी तरह पिघल गयी, जिस तरह सूर्योदयमें पाला समा जाता है। मैं साक्षात् शिव हो उठी। प्राणोंकी धौंकनीके दिन-रात धौंकनेसे मेरे अन्तर्देशका ज्ञान दीपक प्रज्वलित हो उठा। मैंने आत्माका दर्शन किया, अन्धकारका अस्तित्व मिट गया।' उन्होंने प्रणवकी बड़ी महिमा गायी है। उन्होंने मनके संयमपर विशेष जोर दिया- 'मन गदहा है, इसको सदा वशमें रखना चाहिये, नहीं तो पड़ोसीकी केशरकी क्यारी ही चौपट कर देगा।'

लल्लेश्वरीको परमधाम पधारे छः सौ सालसे अधिक हो रहे हैं; तो भी कश्मीरकी रमणीय सुषमामें, प्रकृतिप्रदत्त सौन्दर्यके कण-कणमें उनकी मधुर वाणी अङ्कित है। उन्होंने सत्यके सौन्दर्यका शिवरूपमें दर्शन किया। यही उनकी शिव उपासना अथवा आत्मानन्दसाधना है।



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unaka janm san 19343 ya 47 ke lagabhag kashmeeramen hua thaa. us samay kashmeer men yavanonko prabhuta thee. chaaron or raajaneetik uthala-puthalakee dhoom thee. aise kathin samayamen divy gaayika saadhvee, tapasvineene paamapurake nikat ek men apanee jeevan jyoti bikheree. ve braahmanakanya theen. baarah saalakee avasthaamen unaka vivaah kar diya gayaa. unaka sasuraalaka jeevan atyant kashtaprad tha, sautelee saasane unako sataana aarambh kiyaa. saas katore men pahale ek bada़e-se gol pattharapar bhaat parosakar detee thee tapasyaakee moorti vadhoo aadhe pet khaakar santosh karatee. vah aur bhee anek yaatanaaonse peeda़it karatee thee. par kshamaasheela lalleshvareene kabhee usake virodhamen ek shabd bhee naheen kahaa. bhog aur trishnaase koson door rahakar unhonne eeshvar chintan aur poojanako hee apana sarvasv maanaa. ek samay dev poojaake vyaajase gharamen pashubali honevaalee thee. padma (lalleshvaree) nadeeke tatapar bartan saaph kar rahee thee ki ek pada़osinanevyang kiya ki 'aaj to paanchon anguliyaan gheemen hain! padmaane kahaa- 'bakara mare ya bheda़, mujhe to gol pattharase hee kaam hai.' daivayogase unhonne pada़osinako saaree baaten bata deen, unaka sasur vahaan khada़a tha sasurane apanee patneeko phatakaaraa; par isaka parinaam yah hua ki ve adhikaadhik sataayee jaane lageen. maake kahanepar beta (pati) bhee virodhee ho chalaa. 'vah daakinee hai, jaadoogaranee hai, aadhee raatako sinhakee pothapar baithakar nar maans khaane jaatee hai' – in baatonse, mithya prachaaronse unaka jeevan yaatanaamay ho uthaa. unhonne seemaaonko toड़kar aseemase milanekee thaan lee. poorvajanmake shubh sanskaaron aur is janmake tapobalake phalasvaroop unake aatmaaka deepak prajvalit ho uthaa. ve galiyon aur baajaaronmen shiva-sambandhee geet gaane lageen. koee patthar phenkata, koee pagalee kahata, koee chheda़ta par ye to shivatattvakee madhur saadhanaamen mast rahatee theen. unaka dvaitabhaav mit gaya, samast sansaar aur praanimaatramen unhen shiv parivyaapt deekh pada़e. ve paramahans vrittise avadhootakee tarah ghoomane lagan bhojanako chinta thee, n vastrako ichchha thee; koee do tukada़e daal deta to shivaka prasaad samajhakar grahan kar leteen.

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ve aajeevan yahee seekh detee raheen ki 'sarvavyaapeekee khoj ho hee kis tarah sakatee hai. vah sarvatr hai. shivane kunja-kunjamen jaal phailaakar jeevonko ulajha rakha hai, vah to aatmaamen hee hai. usakee khoj baahar naheen-bheetar ho sakatee hai. shiv hee maataaroopamen doodh pilaata hai, bhaaryaaroop dhaaranakar vilaasakee anubhooti karaata hai, maayaaroopase jeevako mohit karata hai, is maayaavee shivaka jnaan guru hee kara sakate hain.'

unakee yogaanubhootine apane samakaaleen jagatse kaha ki 'mainne apane-aapamen shivakee vyaapti paayee, shivaroopee amrita-sarovaramen mainne apane-aapako lay kar diya, main aatmasth ho gayee. main premaagrimen usee tarah pighal gayee, jis tarah sooryodayamen paala sama jaata hai. main saakshaat shiv ho uthee. praanonkee dhaunkaneeke dina-raat dhaunkanese mere antardeshaka jnaan deepak prajvalit ho uthaa. mainne aatmaaka darshan kiya, andhakaaraka astitv mit gayaa.' unhonne pranavakee bada़ee mahima gaayee hai. unhonne manake sanyamapar vishesh jor diyaa- 'man gadaha hai, isako sada vashamen rakhana chaahiye, naheen to pada़oseekee kesharakee kyaaree hee chaupat kar degaa.'

lalleshvareeko paramadhaam padhaare chhah sau saalase adhik ho rahe hain; to bhee kashmeerakee ramaneey sushamaamen, prakritipradatt saundaryake kana-kanamen unakee madhur vaanee ankit hai. unhonne satyake saundaryaka shivaroopamen darshan kiyaa. yahee unakee shiv upaasana athava aatmaanandasaadhana hai.

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