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भक्त दामोदर और उनकी धर्मपत्नी की मार्मिक कथा
भक्त दामोदर और उनकी धर्मपत्नी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त दामोदर और उनकी धर्मपत्नी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त दामोदर और उनकी धर्मपत्नी]- भक्तमाल


काची नगरीमें दामोदर नामक एक कंगाल ब्राह्मण रहते थे। उनके कोई सन्तान नहीं थी एकमात्र स्त्री ही उनका परिवार थी और भिक्षा ही थी आजीविका। भगवान्का नाम लेते हुए दामोदर नगरमें भिक्षा माँग लाते। किसी दिन कुछ न मिला तो दम्पति जल पीकर सन्तोष कर लेते। भिक्षामें जो कुछ मिल जाता, ब्राह्मणी उसीसे भगवान्का भोग बनाती। दोनों उस प्रसादको ग्रहण करते। किसी दिन कोई अतिथि आ जाता तो उसे बड़े प्रेमसे वे भोजन कराते और स्वयं उपवास कर लेते। दोनोंका एकमात्र काम भगवान्‌का भजन था। भगवान्‌की भक्तिके अतिरिक्त उनके मनमें और कोई कामना नहीं थी।

काशीके स्वामी वे सर्वेश्वर सदासे बड़े कौतुकी हैं। बड़े-बड़े मन्दिरोंमें नित्य उन्हें छप्पन भोग लगते हैं, धनी-मानी जन उनके लिये नाना प्रकारके पकवान बनाते रहते हैं। ब्रह्मा, इन्द्र कुबेर उनके कृपा-कटाक्षकी प्रतीक्षा किया करते हैं। भगवती महालक्ष्मी उनके चरणोंको अङ्कुमें लिये उनके मुख कमलकी ओर एकटक निहारती रहती है कि कभी तो प्रभु किसी नन्हीं सी सेवा करनेका संकेत करें; पर वे ऐसे हैं कि उनको इनमेंसे कहीं कुछ देखनेकी इच्छा ही नहीं होती। उन्हें भूख लगती है किसी कंगालके चिउरे चबानेके लिये, किसी प्रेमोन्मादिनीका केलेका छिलका खानेके लिये या ऐसे ही किसी दरिद्रका कोई उपहार पानेके लिये उन दीनबन्धुकी रुचि है ही निराली आज उन्हें दामोदरका आतिथ्य पानेकी भूख लग गयी। बूढ़े संन्यासी बनकर उसकी टूटी झोपड़ीके द्वारपर आप पहुँच गये।

बेचारे दामोदरको आज भिक्षामें एक मुट्ठी चावल भी नहीं मिला था। खाली हाथ घर लौटकर वे मन-ही-मन भगवान् प्रार्थना कर रहे थे कि आज कोई अतिथि न आ जाय। जहाँ बाघका भय था वहीं साँझ हुई। जिस अतिथिसे डर रहे थे वही द्वारपर आ गया-ऐसा अतिथि कि उससे बुढ़ापेके कारण खड़ा होना कठिन, भूख तथा चकावट के कारण बोलातक कठिनतासे जाता है। दामोदरने द्वारपर आकर हाथ जोड़कर प्रणाम किया। तेजस्वी, बुद्ध वृद्धसंन्यासीने कहा- 'तुम्हारी बड़ी कीर्ति सुनकर आया हूँ। मैं चाहे जिसके भोजन नहीं करता। मैं श्रद्धालु भक्तोंका अन तो माँगकर भी खाता हूँ, पर जिनकी अतिथि अभ्यागतोंमें श्रद्धा नहीं, वे गले पड़ें तब भी उनके अनकी ओर देखतातक नहीं। पुराना शरीर है, चला फिरा जाता नहीं। तुम्हारे अन्नके लोभसे चला आया हूँ। मुझे एक मुट्ठी अन्न मिलेगा या नहीं?"

दामोदर क्या कहें? उन्होंने संन्यासीजीको घरमें लाकर एक कुशके आसनपर बैठा दिया। शीतल जलसे उनके चरण धोये। पत्नीसे जाकर सब हाल कहा। बेचारी ब्राह्मणी भी क्या करती। घरमें तो न कोई वर्तन है न वस्त्र कि उसे बेचा जा सके। फटा चिथड़ा और मिट्टीकी हांड़ी ही घरकी सम्पत्ति है परंतु क्या आज अतिथि घरसे भूखा जायगा ? पति-पत्नी दोनों के नेत्रोंसे टपटप बूँदें गिरने लगीं। सहसा ब्राह्मणीको एक उपाय सूझा। उसने पतिसे कहा- आप तुरंत नाईके घरसे ऊँची माँग लाइबे और मेरे बालोंको काट लीजिये हम दोनों मिलकर उनसे वेणी बाँधनेकी डोरी बट लेंगे। उसे बेचनेपर अतिथिको सेवा हो जायगी।'

दामोदर ऊँची माँग लावे ब्राह्मणीके केशको चारों और थोड़े-थोड़े छोड़कर शेष काट लिया। उन्होंने उनसे दोरी घटी सौभाग्यसे एक ग्राहकने उसे ले लिया। उसके पैसोंसे अतिथिके लिये दाल, चावल, घी आदि आया ब्राह्मणीने रसोई बनायी वृद्ध संन्यासी भोजन करने बैठे केलेके पत्तेपर वे यज्ञभोक्ता सर्वेश्वर भोजन करने लगे। दामोदर उन्हें हवा करने लगे। ब्राह्मणीने आग्रह करके बार-बार परोसा वे अतिथिदेवता जो कुछ बना था सब भोजन कर गये। कुछ भी बचा नहीं। भोजन करके बोले - 'मैं तुम लोगोंकी सेवासे बहुत सन्तुष्ट हुआ। वृद्ध शरीर है, रातको चला नहीं जायगा, रातको यहीं रहूँगा। सन्ध्या समय मेरे लिये अधिक खटपट करनेकी आवश्यकता नहीं। एक हँडिया चावलसे ही काम चल जायगा।'

दामोदरको अतिथिके लिये सायंकालीन भोजनव्यवस्थाकी अधिक चिन्ता नहीं करनी पड़ी। ब्राह्मणीने अपने सिरके बचे हुए केश भी उतरवा दिये और एक चिथड़ा लपेट लिया। केशोंकी डोरी फिर बैटी गयी। उसके पैसोंसे फिर सामान आया और सायंकालीन भोजनमें भी अतिथि देवताने रसोईमें कुछ बचा नहीं रहने दिया। दामोदर और उनकी स्त्रीको बड़ी प्रसन्नता हुई। केवल जब दामोदर अपनी स्त्रीके चिथड़ा लपेटे सिरकी ओर देखते तब उनके नेत्र सजल हो जाते थे।

घास पत्तोंके आसनपर वे अखिल ब्रह्माण्डनायक सर्व-लोकमहेश्वर भगवान् शेषशायी मजेसे सो गये। दामोदर उनके धीरे-धीरे चरण दबाने लगे। जब अतिथि खो गये तब ब्राह्मणीने पतिसे कहा-'साधु महाराज बहुत बूढ़े हैं। इस दुर्बल शरीरसे कल भी इनसे कैसे चला जायगा। आप कल सबेरे ही नगरमें भिक्षाके लिये जाइये। जो कुछ मिल जायगा उससे हमलोग कल भी इनकी सेवा करेंगे। हम दोनों तो जल पीकर कई दिन मजेसे रह सकते हैं।' जैसी ब्राह्मणी, वैसे ब्राह्मण। दोनोंने सलाह पक्की कर ली।

वे अनन्तशायी पड़े-पड़े ब्राह्मण-दम्पतिको बातें सुन रहे थे। उनके कमल-नेत्रोंके कोनेसे करुणाकी धारा बह चली। उनकी इच्छासे ब्राह्मणदम्पति सो गये। प्रभुने उठकर पतिव्रता स्त्रीके मस्तकपर हाथ रखकर कहा-'माता! तेरा मस्तक सुन्दर घुँघराले केशोंसे सुशोभित हो जाय। तेरा शरीर मणिरत्रोंके आभूषणोंसे भूषित, सौन्दर्ययुक्त होजाय। यह कुटिया राजमहल बन जाय ये घर रत्रोंसे भर जायँ। तुम दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करके अन्तमें मेरे वैकुण्ठधाम आओ। मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा।'

सत्यसंकल्प प्रभुके संकल्प मूर्तिमान् होते गये। वे परम दुर्लभ वरदान देकर अन्तर्धान हो गये। प्रातः काल जब ब्राह्मणी जगी, तब अपना दिव्य रूप, अपने पतिका कामदेवके समान रूप, चारों ओर वैभवकी बहुलता और कुटिया स्थानमें राजभवन देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने हड़बड़ाकर दामोदरको जगाया। उसने पतिसे कहा- 'शीघ्र उन साधु महाराजका पता लगाइये। वे कोई साधारण साधु नहीं थे।'

दामोदरने कहा- 'साध्वी! वे वृद्ध अतिथि क्या कोई मनुष्य थे कि उनका पता लगाया जाय? उन सनातन पुरुषको मैं कहाँ खोजने जाऊँ। वे सर्वत्र हैं; पर दर्शन देना चाहें तभी उन्हें देखा जा सकता है। उन भक्तभावनने कृपा करके वृद्ध अतिथिके रूपमें दर्शन दिये। किंतु उन्हें हम सामान्य मनुष्य ही समझते रहे। हमारेद्वारा उनका कोई सत्कार नहीं हुआ। वे करुणासागर हमें क्षमा करें।'

देरतक वे दम्पति भगवान्‌की प्रार्थना करते रहे, उन लीलामयके गुण गाते रहे। इसके पश्चात् महोत्सवकी तैयारी करने लगे। उनका मन सम्पत्ति पाकर भी उसमें आसक्त नहीं हुआ सम्पत्तिको भगवान्‌की सेवा-पूजाका साधन ही उन्होंने माना। भगवान्की, भक्तोंकी, गौ-ब्राह्मणोंकी तथा दीन-दु:खियोंकी सेवामें वे जीवनपर्यन्त लगे रहे।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt daamodar aur unakee dharmapatnee]- Bhaktmaal


kaachee nagareemen daamodar naamak ek kangaal braahman rahate the. unake koee santaan naheen thee ekamaatr stree hee unaka parivaar thee aur bhiksha hee thee aajeevikaa. bhagavaanka naam lete hue daamodar nagaramen bhiksha maang laate. kisee din kuchh n mila to dampati jal peekar santosh kar lete. bhikshaamen jo kuchh mil jaata, braahmanee useese bhagavaanka bhog banaatee. donon us prasaadako grahan karate. kisee din koee atithi a jaata to use bada़e premase ve bhojan karaate aur svayan upavaas kar lete. dononka ekamaatr kaam bhagavaan‌ka bhajan thaa. bhagavaan‌kee bhaktike atirikt unake manamen aur koee kaamana naheen thee.

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bechaare daamodarako aaj bhikshaamen ek mutthee chaaval bhee naheen mila thaa. khaalee haath ghar lautakar ve mana-hee-man bhagavaan praarthana kar rahe the ki aaj koee atithi n a jaaya. jahaan baaghaka bhay tha vaheen saanjh huee. jis atithise dar rahe the vahee dvaarapar a gayaa-aisa atithi ki usase budha़aapeke kaaran khada़a hona kathin, bhookh tatha chakaavat ke kaaran bolaatak kathinataase jaata hai. daamodarane dvaarapar aakar haath joda़kar pranaam kiyaa. tejasvee, buddh vriddhasannyaaseene kahaa- 'tumhaaree bada़ee keerti sunakar aaya hoon. main chaahe jisake bhojan naheen karataa. main shraddhaalu bhaktonka an to maangakar bhee khaata hoon, par jinakee atithi abhyaagatonmen shraddha naheen, ve gale pada़en tab bhee unake anakee or dekhataatak naheen. puraana shareer hai, chala phira jaata naheen. tumhaare annake lobhase chala aaya hoon. mujhe ek mutthee ann milega ya naheen?"

daamodar kya kahen? unhonne sannyaaseejeeko gharamen laakar ek kushake aasanapar baitha diyaa. sheetal jalase unake charan dhoye. patneese jaakar sab haal kahaa. bechaaree braahmanee bhee kya karatee. gharamen to n koee vartan hai n vastr ki use becha ja sake. phata chithada़a aur mitteekee haanड़ee hee gharakee sampatti hai parantu kya aaj atithi gharase bhookha jaayaga ? pati-patnee donon ke netronse tapatap boonden girane lageen. sahasa braahmaneeko ek upaay soojhaa. usane patise kahaa- aap turant naaeeke gharase oonchee maang laaibe aur mere baalonko kaat leejiye ham donon milakar unase venee baandhanekee doree bat lenge. use bechanepar atithiko seva ho jaayagee.'

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satyasankalp prabhuke sankalp moortimaan hote gaye. ve param durlabh varadaan dekar antardhaan ho gaye. praatah kaal jab braahmanee jagee, tab apana divy roop, apane patika kaamadevake samaan roop, chaaron or vaibhavakee bahulata aur kutiya sthaanamen raajabhavan dekhakar bada़a aashchary huaa. usane hada़bada़aakar daamodarako jagaayaa. usane patise kahaa- 'sheeghr un saadhu mahaaraajaka pata lagaaiye. ve koee saadhaaran saadhu naheen the.'

daamodarane kahaa- 'saadhvee! ve vriddh atithi kya koee manushy the ki unaka pata lagaaya jaaya? un sanaatan purushako main kahaan khojane jaaoon. ve sarvatr hain; par darshan dena chaahen tabhee unhen dekha ja sakata hai. un bhaktabhaavanane kripa karake vriddh atithike roopamen darshan diye. kintu unhen ham saamaany manushy hee samajhate rahe. hamaaredvaara unaka koee satkaar naheen huaa. ve karunaasaagar hamen kshama karen.'

deratak ve dampati bhagavaan‌kee praarthana karate rahe, un leelaamayake gun gaate rahe. isake pashchaat mahotsavakee taiyaaree karane lage. unaka man sampatti paakar bhee usamen aasakt naheen hua sampattiko bhagavaan‌kee sevaa-poojaaka saadhan hee unhonne maanaa. bhagavaankee, bhaktonkee, gau-braahmanonkee tatha deena-du:khiyonkee sevaamen ve jeevanaparyant lage rahe.

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ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
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