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भक्त श्रीरसिकमोहन विद्याभूषण की मार्मिक कथा
भक्त श्रीरसिकमोहन विद्याभूषण की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त श्रीरसिकमोहन विद्याभूषण (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त श्रीरसिकमोहन विद्याभूषण]- भक्तमाल


बंगालके वीरभूमि जिलेके एकचक्रा ग्राममें इनका जन्म हुआ था। इन्होंने किसी स्कूल या कालेजमें शिक्षा नहीं पायी थी। घरपर एक मराठी पण्डित रहते थे। उनसे ही इन्होंने पाणिनीय व्याकरण और अन्य शास्त्र पढ़े थे। लिडिंस्टॉन नामक एक विदेशी पण्डितसे घरपर ही इन्होंने अंग्रेजी सीख ली थी। इस तरह पूर्व-पश्चिमके अच्छे पतिका साथ करके इन्होंने चुने हुए ग्रन्थोंका एक पुस्तकालय कर लिया था जो एक विद्यालय ही हो गया था।

सतरह वर्षको अवस्थामें पितृवियोग हो जाने के कारण इनके जीवनमें एक विशेष परिवर्तन हो गया। ये पूर्वबंगालके ढाका शहरमें जाकर दुःखी- गरीबोंकी सेवामें
लग गये। परंतु पूर्ण सेवाके लिये चिकित्साशास्त्र केजाननेकी आवश्यकता थी। वे कलकत्ते वापस आये और किसी प्रकार मेडिकल कालेजमें चिकित्साशास्त्रका अध्ययन किया। साथ-ही-साथ संस्कृत कालेज पुस्तकालयसे संस्कृतकी पुस्तकें लेकर संस्कृत भाषाका भी अभ्यास कर लिया।

इसी समय महात्मा शिशिरकुमार घोषने इनको श्रीगौराङ्गकी ओर लगाया। इस विषयपर ये 'विष्णुप्रिया', 'आनन्दबाजार' आदि पत्रिकाओंमें प्रबन्ध लिखते। आपने श्रीमत् रूपसनातन-शिक्षामृत, श्रीराय रामानन्द, श्रीकृष्णमाधुरी, गंभीरामें श्रीगौराङ्ग, श्रीगोपीगीता, श्रीनाममाधुरी, चण्डीदास विद्यापति, जगन्नाथवल्लभ, अद्वैतवाद, आनन्दमीमांसा, आत्मनिवेदन, श्रीगीतगोविंद आदि बहुत-से वैष्णव ग्रन्थोंकी रचना और अनुवाद भी किया था। बहुत-सीपत्र-पत्रिकाओंका सम्पादन भी ये करते रहे। 'प्रयाग अखिल भारत वैष्णवसम्मेलन' के ये सभापति हुए थे।

विश्वकवि रवीन्द्रनाथसे इनकी खास घनिष्ठता थी । एक बार श्रीक्षितिमोहनके साथ ये कविगुरुसे मिलने गये थे। बातें करते बहुत देर हो गयी, विदा होते समय इन्होंने कहा-" इतना समय बीत गया है, यह तो पता ही नहीं था। सचमुच हम न तो 'काल'को ही जानते हैं और न 'काली' को ही। हम तो वैष्णव हैं, कहीं कोई जान या अनजानमें भाव (प्रेम) - के घरमें अपराध करेंगे तो प्रेमके ठाकुर हमें कभी क्षमा नहीं करनेके । बस, यह अपराध कभी न हो।' कविगुरुने उत्तरमें कहा- 'विद्याभूषणजी ! ? स्वार्थी मनुष्योंकी भाँति केवल अपने ही लिये यह प्रार्थना न करें, अपितु हमारे लिये और सारे जगत्केलिये भी यही प्रार्थना करें। भावके घरमें कोई अपराध न करे। जगत्के सारे अपराध क्षन्तव्य हैं, पर इस अपराधसे कहीं छुटकारा नहीं।'

एक सौ वर्षोंसे अधिक जीवित रहकर इन्होंने आदर्श | जीवन बितानेका पथ दिखलाया है।

ये उज्ज्वल - मधुर भक्तिमार्गके उच्चश्रेणीके सिद्ध पुरुष थे, पर कर्मोंकी अवहेलना नहीं करते थे। गृहस्थ थे, परंतु अपना जीवन संन्यासीकी तरह बिताया करते थे। इनके पुत्र और स्त्रीकी मृत्यु छोटी अवस्थामें ही हो गयी थी। इन्होंने अपनी भक्ति-प्रेमप्लावित दार्शनिक प्रतिभासे और अपने दीर्घजीवनके आदर्श कार्यकलापसे वैष्णव- जगत्की जो अपूर्व सेवा की है, उसकी कहीं तुलना नहीं मिल सकती।



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bangaalake veerabhoomi jileke ekachakra graamamen inaka janm hua thaa. inhonne kisee skool ya kaalejamen shiksha naheen paayee thee. gharapar ek maraathee pandit rahate the. unase hee inhonne paanineey vyaakaran aur any shaastr padha़e the. lidinstaॉn naamak ek videshee panditase gharapar hee inhonne angrejee seekh lee thee. is tarah poorva-pashchimake achchhe patika saath karake inhonne chune hue granthonka ek pustakaalay kar liya tha jo ek vidyaalay hee ho gaya thaa.

satarah varshako avasthaamen pitriviyog ho jaane ke kaaran inake jeevanamen ek vishesh parivartan ho gayaa. ye poorvabangaalake dhaaka shaharamen jaakar duhkhee- gareebonkee sevaamen
lag gaye. parantu poorn sevaake liye chikitsaashaastr kejaananekee aavashyakata thee. ve kalakatte vaapas aaye aur kisee prakaar medikal kaalejamen chikitsaashaastraka adhyayan kiyaa. saatha-hee-saath sanskrit kaalej pustakaalayase sanskritakee pustaken lekar sanskrit bhaashaaka bhee abhyaas kar liyaa.

isee samay mahaatma shishirakumaar ghoshane inako shreegauraangakee or lagaayaa. is vishayapar ye 'vishnupriyaa', 'aanandabaajaara' aadi patrikaaonmen prabandh likhate. aapane shreemat roopasanaatana-shikshaamrit, shreeraay raamaanand, shreekrishnamaadhuree, ganbheeraamen shreegauraang, shreegopeegeeta, shreenaamamaadhuree, chandeedaas vidyaapati, jagannaathavallabh, advaitavaad, aanandameemaansa, aatmanivedan, shreegeetagovind aadi bahuta-se vaishnav granthonkee rachana aur anuvaad bhee kiya thaa. bahuta-seepatra-patrikaaonka sampaadan bhee ye karate rahe. 'prayaag akhil bhaarat vaishnavasammelana' ke ye sabhaapati hue the.

vishvakavi raveendranaathase inakee khaas ghanishthata thee . ek baar shreekshitimohanake saath ye kaviguruse milane gaye the. baaten karate bahut der ho gayee, vida hote samay inhonne kahaa-" itana samay beet gaya hai, yah to pata hee naheen thaa. sachamuch ham n to 'kaala'ko hee jaanate hain aur n 'kaalee' ko hee. ham to vaishnav hain, kaheen koee jaan ya anajaanamen bhaav (prema) - ke gharamen aparaadh karenge to premake thaakur hamen kabhee kshama naheen karaneke . bas, yah aparaadh kabhee n ho.' kavigurune uttaramen kahaa- 'vidyaabhooshanajee ! ? svaarthee manushyonkee bhaanti keval apane hee liye yah praarthana n karen, apitu hamaare liye aur saare jagatkeliye bhee yahee praarthana karen. bhaavake gharamen koee aparaadh n kare. jagatke saare aparaadh kshantavy hain, par is aparaadhase kaheen chhutakaara naheen.'

ek sau varshonse adhik jeevit rahakar inhonne aadarsh | jeevan bitaaneka path dikhalaaya hai.

ye ujjval - madhur bhaktimaargake uchchashreneeke siddh purush the, par karmonkee avahelana naheen karate the. grihasth the, parantu apana jeevan sannyaaseekee tarah bitaaya karate the. inake putr aur streekee mrityu chhotee avasthaamen hee ho gayee thee. inhonne apanee bhakti-premaplaavit daarshanik pratibhaase aur apane deerghajeevanake aadarsh kaaryakalaapase vaishnava- jagatkee jo apoorv seva kee hai, usakee kaheen tulana naheen mil sakatee.

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