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भक्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी की मार्मिक कथा
भक्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी]- भक्तमाल


गोस्वामीजीका आविर्भाव जिस समय हुआ था, वह समय भी हिन्दूजातिके लिये घोर निराशाका ही था। चारों व और हम अन्धकारसे घिरे हुए थे। कोई मार्ग सूप्त नहीं रहा था। तुलसीदासजीने भगवान्‌का लोकमंगल रूप दिखाकर हिन्दूजातिको मिटनेसे तो बचाया ही, साथ ही व्यक्तिके जीवनमें भी आशाका उदय हुआ। हमने भगवान् श्रीरामचन्द्रकी भक्तिका आश्रय लिया और उसकी शक्तिसे हमारी रक्षा हुई। गोस्वामीजीने हमारी ही ठेठ भाषामें हमें समझाया कि भगवान् हमसे दूर नहीं हैं, वे सबंधा हमारे जीवनसे सटे हुए हैं!

हिन्दीके राजाश्रित कवि अपना तथा अपने आश्रयदाता नरेशका जीवनवृत्तान्त लिखा करते थे, परंतु गोसाईजीने स्वतन्त्र होनेके कारण ऐसा करनेकी कोई आवश्यकता नहीं समझी। उनके ग्रन्थोंसे उनके जीवनके सम्बन्धमें कुछ भी पता नहीं चलता। हाँ, उनकी भक्तिजन्य दीनताको झलक अवश्य सर्वत्र मिलती है।

गोस्वामीजी वाल्मीकिके अवतार माने जाते हैं। आपका आविर्भाव वि0 सं0 1554 को श्रावणशुक्ला सप्तमीको बाँदा जिलेके राजापुर गाँवमें एक सरयूपारीण ब्राह्मणके घर हुआ था

पंदरह से चउवन बिष, कालिंदी के तौर।

आवन सुक्ला सप्तमी, तुलसी धरेड सरीर ॥

आपके पिताका नाम था आत्माराम दुबे और माताका नाम था हुलसी जन्मके समय आप तनिक भी रोये नहीं और आपके बत्तीस दाँत उगे हुए थे। आप अभुक्तमूलमें पैदा हुए थे, जिसके कारण स्वयं बालकके या माता-पिताके अनिष्टको आशङ्का थी। बचपनमें आपका नाम तुलाराम था।

वि0 सं0 1583 की ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशीको आपका विवाह बुद्धिमती (या रत्नावलीजी) से हुआ। पत्नीके प्रति आपकी बड़ी गहरी आसक्ति थी। एक दिन जब वह नैहर चली गयी, आप उसके घर रातकोछिपकर पहुँचे। उसे बड़ा संकोच हुआ और उसने यह

दोहा कहा

हाड़ मांस को देह मम, तापर जितनी प्रोति।

तिसु आधो जो राम प्रति अवसि मिटिहि भवभीति ।।

यह बात आपको बहुत लगी। बिना विरमे हुए आप वहाँसे चल दिये । वहाँसे आप सीधे प्रयाग आये और विरक्त हो गये। और जगन्नाथ, रामेश्वर, द्वारका तथा बदरीनारायण पैदल गये एवं तीर्थाटनके द्वारा अपने वैराग्य और तितिक्षाको बढ़ाया। तीर्थाटनमें आपको चौदह वर्ष लगे। श्रीनरयनन्दजीको आपने गुरुरूपमें वरण किया। घर छोड़ने के पीछे पलीने एक बार यह दोहा-

गोसाईजीको लिख भेजा

कटिकी खोनी कनक सी, रहति सखिन सँग सोड़।

मोहि फटे को इरु नहीं, अनत कटे डर होइ ॥

इसके उत्तरमें गोसाईजीने लिखा

कटे एक रघुनाथ सँग बाँधि जटा सिर केस ।

हम तो चाखा प्रेमरस, पत्नी के उपदेस ॥

बहुत दिन पीछे वृद्धावस्थामें आप एक बार चित्रकूटमे लौटते समय अनजानमें अपने ससुरके घर जा पहुँचे। उनकी स्त्री भी बूढ़ी हो गयी थी। बड़ी देरके बाद उसने इन्हें पहचाना। उसकी इच्छा हुई कि इनके साथ रहती तो रामभजन और पतिकी सेवा दोनों साथ-साथ करके जन्म सुधारती उसने सबेरे अपनेको गोसाईजी के सामने प्रकट किया और अपनी इच्छा कह सुनायी। गोसाईजी तुरंत वहाँसे चलते बने।

कहते हैं कि गोसाईजी शौचके लिये नित्य गङ्गापार जाया करते थे और लौटते समय लोटेका बचा हुआ जल एक पेड़की जड़में डाल देते थे उस पेड़पर एक प्रेत रहता था। जलसे तुम होकर वह एक दिन गोसाईजी के सामने प्रकट हुआ और उसने कहा कि मुझसे कुछ वर माँगो गोसाईजीने श्रीरामचन्द्रजीके दर्शनकी लालसा प्रकट की। प्रेतने बतलाया कि 'अमुक मन्दिरमें नित्यसायंकाल रामायणकी कथा होती है, वहाँ कोढ़ीके वेशमें नित्यं हनुमानजी कथा सुनने आते हैं। सबसे पहले आते हैं और सबके अन्तमें जाते हैं उन्हें ही दृढ़तापूर्वक पकड़ो।' गोसाईजीने ऐसा ही किया श्रीहनुमानजी के चरण पकड़कर आप जोर जोरसे रोने लगे। अन्तमें हनुमानजीने आज्ञा दी कि 'जाओ, चित्रकूटमें दर्शन होंगे।' आदेशानुसार आप चित्रकूट आये। एक दिन वनमें धूम रहे थे कि दो सुन्दर राजकुमार एक श्याम और एक गौर-एक हरिणके पीछे धनुष-बाण लिये घोड़ा दौड़ाये दिखलायी दिये। रूप देखकर आप मोहित हो गये। इतने में हनुमानजीने आकर पूछा-'कुछ देखा?" "हाँ दो सुन्दर राजकुमार इसी राहसे घोड़ेपर गये हैं।' हनुमानजीने कहा- 'वे ही राम-लक्ष्मण थे।'

वि0 सं0 1607 की मौनी अमावास्या थी। दिन था बुधवार चित्रकूट के घाटपर बैठकर तुलसीदासजी चन्दन पिस रहे थे इतनेमें भगवान् सामने आ गये और आपसे चन्दन माँगा दृष्टि ऊपरको उठी तो उस अनूप रूपराशिको देखकर आँखें मुग्ध हो गयीं टकटकी बंध गयी। शरीरकी सारी सुध-बुध जाती रही।

संवत् 1631 को रामनवमी, मङ्गलवारको श्रीहनुमानजी की आज्ञा और प्रेरणासे आपने रामचरितमानसका प्रणयन प्रारम्भ किया। दो वर्ष सात महीने, छब्बीस दिनोंमें आपने उसे पूरा किया। पूरा हो चुकनेपर श्रीहनुमानजी पुनः प्रकट हुए और पूरी रामायण सुनी और आशीर्वाद दिया कि यह कृति तुम्हारी कीर्तिको अमर कर देगी।

एक दिन चोर तुलसीदासजीके यहाँ चोरी करने गये तो देखा कि एक श्यामसुन्दर बालक धनुष-बाण लिये पहरा दे रहा है। चोर लौट गये। दूसरे दिन भी ये आये तो उसी पहरेदारको देखा। सबेरे उन्होंने गोसाईजीसे पूछा कि आपके यहाँ श्यामसुन्दर बालक कौन पहरा देता है। गोसाईजी समझ गये कि मेरे कारण प्रभुको कष्ट उठाना पड़ता है। अतएव आपके पास जो कुछ भी था, सब उन्होंने लुटा दिया।
आपके आशीर्वादसे एक विधवाका पति पुनःजीवित हो गया। यह खबर बादशाहतक पहुँची। उसने 1 इन्हें बुला भेजा और यह कहा कि 'कुछ करामात दिखाओ।' आपने कहा कि 'रामनाम' के अतिरिक्त मैं कुछ भी करामात नहीं जानता। बादशाहने इन्हें कैद कर । लिया और कहा कि 'जबतक करामात नहीं दिखाओगे, छूटने नहीं पाओगे।' तुलसीदासजीने श्रीहनुमानजी की स्तुति की। हनुमानजीने बंदरोंकी सेनासे कोटको विध्वंस करना आरम्भ किया। बादशाहने आपके पैरोंमें गिरकर क्षमा माँगी।

गोसाईजी एक बार वृन्दावन आये वहाँ एक मन्दिरमें दर्शनको गये। श्रीकृष्णमूर्तिका दर्शन करके यह दोहा आपने कहा-

का बरनउँ छबि आज की, भले बने हो नाथ।

तुलसी मस्तक तब नवै (जब) धनुष यान लेओ हाथ ॥

भगवान्ने आपको श्रीरामचन्द्रजीके स्वरूपमें दर्शन दिये।

आपके रचे हुए बारह ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं दोहावली, कवित्तरामायण, गीतावली, रामचरितमानस, रामलला नहछू, पार्वतीमंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, रामाज्ञा, विनयपत्रिका, वैराग्यसंदीपनी, कृष्णगीतावली । इनके सिवा रामसतसई, संकटमोचन हनुमानबाहुक, रामनाममणिकोषमञ्जूषा, रामशलाका, हनुमान चालीसा आदि ग्रन्थ भी आपके नामसे प्रख्यात हैं।

गोस्वामी तुलसीदासजीकी रामायण भारतके घर घरमें बड़े आदर और भक्तिके साथ पढ़ी और पूजी जाती है। मानसने कितने बिगड़ोंको सुधारा है, कितने मुमुक्षुओंको मोक्षकी प्राप्ति करायी है, कितने भगवत् प्रेमियोंको भगवान्से मिलाया है इसकी कोई गणना नहीं है। यह तरनतारन ग्रन्थ है। कोई भी हिंदू इससे अपरिचित नहीं है।

126 वर्षकी अवस्थामें संवत् 1680 की श्रावण शुक्ला सप्तमी, शनिवारको ही आपने अस्सीघाटपर शरीर छोड़कर साकेतलोकको प्रयाण किया-

संवत सोलह से असी, असी गंग के तीर ।

श्रावन सुक्ला सप्तमी, तुलसी तस्यो सरीर ॥



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doha kahaa

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katikee khonee kanak see, rahati sakhin sang soda़.

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kate ek raghunaath sang baandhi jata sir kes .

ham to chaakha premaras, patnee ke upades ..

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bhagavaanne aapako shreeraamachandrajeeke svaroopamen darshan diye.

aapake rache hue baarah granth prasiddh hain dohaavalee, kavittaraamaayan, geetaavalee, raamacharitamaanas, raamalala nahachhoo, paarvateemangal, jaanakee mangal, baravai raamaayan, raamaajna, vinayapatrika, vairaagyasandeepanee, krishnageetaavalee . inake siva raamasatasaee, sankatamochan hanumaanabaahuk, raamanaamamanikoshamanjoosha, raamashalaaka, hanumaan chaaleesa aadi granth bhee aapake naamase prakhyaat hain.

gosvaamee tulaseedaasajeekee raamaayan bhaaratake ghar gharamen bada़e aadar aur bhaktike saath padha़ee aur poojee jaatee hai. maanasane kitane bigada़onko sudhaara hai, kitane mumukshuonko mokshakee praapti karaayee hai, kitane bhagavat premiyonko bhagavaanse milaaya hai isakee koee ganana naheen hai. yah taranataaran granth hai. koee bhee hindoo isase aparichit naheen hai.

126 varshakee avasthaamen sanvat 1680 kee shraavan shukla saptamee, shanivaarako hee aapane asseeghaatapar shareer chhoda़kar saaketalokako prayaan kiyaa-

sanvat solah se asee, asee gang ke teer .

shraavan sukla saptamee, tulasee tasyo sareer ..

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