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गायत्रीमाताकी कृपा

घटना कई वर्ष पूर्वकी है। उन दिनों मैं तेजगढ़ माध्यमिक पाठशालामें अध्यापक था। तेजगढ़ मध्यप्रदेशके दमोह जिलेमें एक पुराना वीरान गाँव है, जहाँ पुराने किलोंके खंडहर अधिक हैं। पूरा गाँव तीन ओरसे एक नदीद्वारा घिरा हुआ है। वीरान गाँव होनेके कारण खंडहरोंपर सीताफलके झाड़ अधिक हैं। प्रायः हर जगह बिच्छू और सर्प घूमते रहते हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता था कि जब बिच्छू या सर्प दिखायी न दे।

मैं एक पुराने मकानमें किरायेपर रहता था। मकानमें एक कमरा और एक दालान मेरे हिस्से में था, शेष मकानमें वृद्धा मकान मालकिन रहती थी। मकान मालकिनको तोता पालनेका शौक था, इसलिये उसने पिंजड़े में दो तोते पाल रखे थे। दोनों पिंजड़े वह दालानके छप्परकी लकड़ियोंमें ऊपर टाँग देती थी।

मैं सोकर प्रातः जल्दी उठ जाता और टहलनेके लिये नदी किनारे निकल जाता था। वहाँसे स्नान करके लौटता तो थोड़ी देरके लिये घरके दालानकी खुली हवामें बैठकर गायत्री मन्त्रका जप किया करता था।

एक दिनकी बात है। प्रातः छः बजेका समय था । मैं स्नानकर घर आया और प्रतिदिनकी भाँति दालान में बैठकर जप करने लगा। मकान मालकिनने उस दिन भी सदाकी भाँति तोतोंके पिंजड़े मेरे दालानमें टाँग दिये थे। मैं जहाँ बैठा था, वहीं ठीक ऊपर वे छप्परमें टँगे थे। मैं आँख बन्दकर गायत्री मन्त्रका जप कर रहा था। उसीसमय दालानके छप्पर में एक काला सर्प तोता पकड़ने आया। ज्यों ही उसने तोतेको पकड़नेके लिये अपना मुख छप्परमेंसे निकालकर पिंजड़े में डालना चाहा, त्यों ही उसका पूरा शरीर खिसककर पिंजड़ेपर आ गिरा। तोता बड़ी जोरसे चिल्लाया और सर्प पिंजड़ेपरसे सरककर नीचे दालान में आ गिरा। तोतेका चिल्लाना और सर्पका छप्परसे नीचे गिरना – दोनों आकस्मिक शब्दोंसे मेरा ध्यान टूट गया। मैंने ज्यों ही आँख खोली तो सामने देखा कि एक भयंकर काला नाग फन फैलाये मुझे घूर रहा है। पता नहीं, ऐसी कौन-सी शक्ति मुझमें आयी कि मैं एक सेकंडमें ही कूदकर दालानसे आँगनमें आ गया। मेरा आँगनमें पहुँचना था कि बड़े जोरकी आवाजके साथ दालानका छप्पर टूटकर धरतीपर गिर पड़ा, मानो वह मेरे बाहर निकलनेकी ही प्रतीक्षा कर रहा था।

मैं हतप्रभ - सा खड़ा खड़ा सोचता रह गया कि यदि सर्प मेरे सामने न गिरता तो आज मेरा बचना कठिन था। मेरा रोम-रोम सिहर उठा। आवाज सुनकर पासकी पुलिस लाइनसे पुलिसवाले आ गये थे। मैंने उनकी सहायतासे तोतोंके दोनों पिंजड़े बाहर निकाले। भगवान्की कृपासे दोनों तोते भी जीवित थे। सर्प कहीं दिखायी नदिया। पता नहीं, वह किधरसे बाहर निकल गया था। वर्षोंके बाद आज भी इस घटनाका स्मरणकर और गायत्रीदेवीकी कृपाका अनुभव करके मैं रोमांचित हो उठता हूँ।
[ डॉ० श्रीजमनाप्रसादजी 'जलेश' ]



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gaayatreemaataakee kripaa

ghatana kaee varsh poorvakee hai. un dinon main tejagadha़ maadhyamik paathashaalaamen adhyaapak thaa. tejagadha़ madhyapradeshake damoh jilemen ek puraana veeraan gaanv hai, jahaan puraane kilonke khandahar adhik hain. poora gaanv teen orase ek nadeedvaara ghira hua hai. veeraan gaanv honeke kaaran khandaharonpar seetaaphalake jhaada़ adhik hain. praayah har jagah bichchhoo aur sarp ghoomate rahate hain. aisa koee din naheen jaata tha ki jab bichchhoo ya sarp dikhaayee n de.

main ek puraane makaanamen kiraayepar rahata thaa. makaanamen ek kamara aur ek daalaan mere hisse men tha, shesh makaanamen vriddha makaan maalakin rahatee thee. makaan maalakinako tota paalaneka shauk tha, isaliye usane pinjada़e men do tote paal rakhe the. donon pinjada़e vah daalaanake chhapparakee lakada़iyonmen oopar taang detee thee.

main sokar praatah jaldee uth jaata aur tahalaneke liye nadee kinaare nikal jaata thaa. vahaanse snaan karake lautata to thoda़ee derake liye gharake daalaanakee khulee havaamen baithakar gaayatree mantraka jap kiya karata thaa.

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main hataprabh - sa khada़a khada़a sochata rah gaya ki yadi sarp mere saamane n girata to aaj mera bachana kathin thaa. mera roma-rom sihar uthaa. aavaaj sunakar paasakee pulis laainase pulisavaale a gaye the. mainne unakee sahaayataase totonke donon pinjada़e baahar nikaale. bhagavaankee kripaase donon tote bhee jeevit the. sarp kaheen dikhaayee nadiyaa. pata naheen, vah kidharase baahar nikal gaya thaa. varshonke baad aaj bhee is ghatanaaka smaranakar aur gaayatreedeveekee kripaaka anubhav karake main romaanchit ho uthata hoon.
[ daॉ0 shreejamanaaprasaadajee 'jalesha' ]

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