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भगवतीकी कृपासे रोग-मुक्ति

बात सन् १९४५ ई० की है। मेरा द्वितीय पुत्र चि० रतीश जो बादमें राँची कॉलेज मानविकीविभागमें लेक्चरर हुआ, एक होमियोपैथिक औषधि खानेसे एकाएक बीमार पड़ गया। सारे शरीरमें चेचक जैसी बड़ी-बड़ी गोटियाँ निकल आयीं- अब तो जीवनसे निराशा होने लगी थी। उन दिनों मैं आरा जिलास्कूलमें शिक्षक तथा बोर्डिंग- सुपरिन्टेन्डेंट था। प्रधानाध्यापक स्वर्गीय नितरंजन बाबूने कहा- 'अवधेश बाबू ! आप रात्रिभर श्रीदुर्गासप्तशती (अ० ११ श्लोक २९) - के इस मन्त्रका जप करें

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा

रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥

तदनुसार मैंने रातभर जगकर बड़े मनोयोगसे उपर्युक्त मन्त्रका जप किया। जगज्जननीकी कृपासे दूसरे दिनसे ही बालक स्वस्थ होने लगा। कुछ दिनोंमें वह पूर्ण स्वस्थ हो गया। यह सच है कि वे आर्तोंकी याचना अवश्य पूर्ण करती हैं । [ अखौरी श्रीअवधेशनन्दनजी ]



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bhagavateekee kripaase roga-mukti

baat san 1945 ee0 kee hai. mera dviteey putr chi0 rateesh jo baadamen raanchee kaॉlej maanavikeevibhaagamen lekcharar hua, ek homiyopaithik aushadhi khaanese ekaaek beemaar pada़ gayaa. saare shareeramen chechak jaisee bada़ee-bada़ee gotiyaan nikal aayeen- ab to jeevanase niraasha hone lagee thee. un dinon main aara jilaaskoolamen shikshak tatha bordinga- suparintendent thaa. pradhaanaadhyaapak svargeey nitaranjan baaboone kahaa- 'avadhesh baaboo ! aap raatribhar shreedurgaasaptashatee (a0 11 shlok 29) - ke is mantraka jap karen

rogaanasheshaanapahansi tushtaa

rushta tu kaamaan sakalaanabheeshtaan .
tvaamaashritaanaan n vipannaraanaan

tvaamaashrita hyaashrayataan prayaanti ..

tadanusaar mainne raatabhar jagakar bada़e manoyogase uparyukt mantraka jap kiyaa. jagajjananeekee kripaase doosare dinase hee baalak svasth hone lagaa. kuchh dinonmen vah poorn svasth ho gayaa. yah sach hai ki ve aartonkee yaachana avashy poorn karatee hain . [ akhauree shreeavadheshanandanajee ]

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