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प्रभु अतुलकृष्ण गोस्वामी की मार्मिक कथा
प्रभु अतुलकृष्ण गोस्वामी की अधबुत कहानी - Full Story of प्रभु अतुलकृष्ण गोस्वामी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [प्रभु अतुलकृष्ण गोस्वामी]- भक्तमाल


श्रीचैतन्यमहाप्रभुके नित्यसंगी ओोनित्यानन्द प्रभुके वंशमें तेरहवीं पीढ़ीमें प्रभु अतुलकृष्ण गोस्वामीका जन्म संवत् 1925 वि0 को कार्तिक कृष्ण दशमीकी रात्रिको हुआ। उस समय बङ्गदेशमें घर-घर महाशक्तिकी पूजा हो रही थी, आवाहन मन्त्र उच्चारित हो रहे थे। ऐसे पुण्यकालमें श्रीअतुलकृष्ण गोस्वामी शिशुरूपमें अवतीर्ण हुए उस समय महामायाकी पूजाका मृदंग मानो मंगल वाद्य बजा। शङ्खध्वनिने विजय घोषणा की। वैष्णवी शक्तिके आवाहन मन्त्र उनके जन्मकालका स्वस्तिवाचन बने कलकत्तेका शिमुलिया गाँव उनके आविर्भावसे कृतार्थ हो गया। बाल्यकालमें अध्ययन किया, यौवनमें उस्ताद रखकरसंगीतकी शिक्षा प्राप्त की और गयाके पण्डा कन्हाईलालसे इसराज बजाना सीखा। इस प्रकार रसिकता और सहृदयताके द्वारा वे एक विदग्ध नागरिकके रूपमें प्रसिद्ध हो गये। इसके बाद उन्होंने कुछ दिनोंतक व्यवसाय भी किया। परंतु सांसारिक उल्लास- विलासमें उनको तृप्ति कहाँ मिलती। उनके अन्तःकरणमें तो अन्तःसलिला फल्गुके सदृश भक्तिकी धारा प्रवाहित हो रही थी। सांसारिक जीवनमें उनको रस कैसे मिल सकता था।

फिर तो उनका मन सत्सङ्गकी ओर झुका । श्रीरामानुजानुयायी वासुदेव महाराज, पुरी धामके बड़े बाबाजी, बंगालके प्रसिद्ध तान्त्रिक साधक ताराक्षेपा, वृन्दावनके बाबा रामकृष्णदासजी, सुप्रसिद्ध महात्मा पागलहरनाथ, परमहंस रामकृष्ण, राजपूतानेके खण्डारीबाबा, सच्चिदानन्द बालकृष्ण व्रजवाला, वृन्दावनके ग्वारियाबाबा, श्रीविजयकृष्ण गोस्वामी महाराज प्रभृति साधकोंके सत्सङ्ग और प्रभावसे उनके जीवनमें नवजीवनका सञ्चार हुआ। वे खड़दाके श्रीश्यामसुन्दरकी सेवा करनेमें लगे हुए एक महान् साधक थे। लक्ष्मण शास्त्री द्रविड़, महामहोपाध्याय प्रमथनाथ तर्कभूषण, महामहोपाध्याय फणिभूषण तर्कवागीश आदि विद्वान् उनके प्रभावसे गौड़ीय वैष्णव-धर्ममें अनुरक्त हुए थे। गौड़ीय वैष्णव-सम्मेलनके वे प्रतिष्ठाता और सभापति थे। उनका जीवन प्रेमभक्ति और वैराग्यके साधनमें अतिवाहित होता था। वे एक प्रसिद्ध वक्ता और शास्त्रव्याख्याता थे। उन्होंने जो उदार मत और साधनाकी पद्धति चलायी है, उससे अनुप्राणित होकर सहस्त्रों भक्तोंने वैष्णवधर्मको अपना जीवनादर्श बना लिया है। वृन्दावनीय रसकी साधना उनके जीवनमें मूर्तिमन्त हो गयी थी। कभी-कभी वे प्रेमसमाधिमें लीन हो जाते थे। उनके वचन 'सदुक्तिसंग्रह' नामक पुस्तकमें प्रकाशित हुए हैं। 'नानान निधि', 'भक्तेर जय', 'पूजार गल्प' आदि ग्रन्थोंमें साधना और अनुभूतिके विचित्रविन्यास साधकोंको विस्मित कर देते हैं। साहित्यके द्वारा भागवत-रस वितरण करना उनके जीवनकी विशेषता है। वे आदर्श भक्त महापुरुष अपने नित्यके व्यवहारकी सामग्रीको भी प्रार्थियोंको दान कर देते थे। उन्होंने जीवनमें जो अर्थसञ्चय किया था, उसका अधिकांश यक्ष्मारोगियोंकी चिकित्साके लिये कार्सिया अस्पतालको दान कर दिया।

संगीताचार्य विष्णुदिगम्बरजी उनके अन्तरंग मित्र थे। कासिमबाजारके राजा स्वर्गीय मणीन्द्रचन्द्र नन्दी उनके प्रधान अनुरागी भक्तोंमेंसे थे। वे कभी काशी, कभी पुरी और कभी वृन्दावनमें वास करते थे। महात्मा तुलसीदासजीकी नाम-महिमा दोहावलीको 'तुलसी-मञ्जरी' नामसे बँगला भाषामें व्याख्याके साथ उन्होंने प्रकाशित किया था। वे सं0 2001 में माघी अमावस्याके दिन इस लौकिक शरीरका त्याग करके अपने प्रियतम श्रीराधा- श्यामसुन्दरके पादपद्मोंमें विलीन हो गये। उन्होंने कहा था-भक्तको जय हो, वह महान् है, वह नित्य प्रकाशरूप है, भक्त स्वयंप्रकाश भगवान्को भी प्रकाशित करता है, इसलिये भक्त भगवान्से भी बड़ा है।



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shreechaitanyamahaaprabhuke nityasangee oonityaanand prabhuke vanshamen terahaveen peedha़eemen prabhu atulakrishn gosvaameeka janm sanvat 1925 vi0 ko kaartik krishn dashameekee raatriko huaa. us samay bangadeshamen ghara-ghar mahaashaktikee pooja ho rahee thee, aavaahan mantr uchchaarit ho rahe the. aise punyakaalamen shreeatulakrishn gosvaamee shishuroopamen avateern hue us samay mahaamaayaakee poojaaka mridang maano mangal vaady bajaa. shankhadhvanine vijay ghoshana kee. vaishnavee shaktike aavaahan mantr unake janmakaalaka svastivaachan bane kalakatteka shimuliya gaanv unake aavirbhaavase kritaarth ho gayaa. baalyakaalamen adhyayan kiya, yauvanamen ustaad rakhakarasangeetakee shiksha praapt kee aur gayaake panda kanhaaeelaalase isaraaj bajaana seekhaa. is prakaar rasikata aur sahridayataake dvaara ve ek vidagdh naagarikake roopamen prasiddh ho gaye. isake baad unhonne kuchh dinontak vyavasaay bhee kiyaa. parantu saansaarik ullaasa- vilaasamen unako tripti kahaan milatee. unake antahkaranamen to antahsalila phalguke sadrish bhaktikee dhaara pravaahit ho rahee thee. saansaarik jeevanamen unako ras kaise mil sakata thaa.

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