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भक्तराज भीष्मपितामह की मार्मिक कथा
भक्तराज भीष्मपितामह की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तराज भीष्मपितामह (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तराज भीष्मपितामह]- भक्तमाल


परित्यजेयं त्रैलोक्यं राज्यं देवेषु वा पुनः । यद्वाप्यधिकमेताभ्यां न तु सत्यं कथञ्चन ॥

- भीष्म (महाभारत) महर्षि के शापसे आठ वओंको मनुष्यलोकमें जन्म लेना था। श्रीगङ्गाजीने उनकी माता होना स्वीकार किया। वे महाराज शन्तनुकी पत्नी हुई सात वसुओंको तो जन्मते ही उन्होंने अपने जलमें डालकर उनके लोक भेज दिया, पर आठवें वसु द्यौको शन्तनुजीने रख लिया। इसी बालकका नाम 'देवव्रत' हुआ। महाराज शन्तनु दाशराजकी पालिता पुत्री सत्यवतीपर मुग्ध हो गये; किंतु दाशराज चाहते थे कि उनकी पुत्रीकी सन्तान हो सिंहासनपर बैठनेको अधिकारिणी मानी जाय, तब वे महाराजको अपनी कन्या दें। महाराज अपने ज्येष्ठ सुशील पुत्र देवव्रतका स्वत्व छीनना नहीं चाहते थे और सत्यवतीको आसक्ति भी उनमें थी। वे उदास रहने लगे। मन्त्रियोंसे पिताकी उदासीका पता लगाकर देवव्रत दाशराजके पास गये और उन्होंने कहा- मैं राज्यासन नहीं लूँगा।' जब दाशराजने शङ्का की कि तुम तो राजगद्दीपर नहीं बैठोगे, पर तुम्हारी सन्तान राज्यके लिये झगड़ सकती है, तब उन्होंने आजन्म अविवाहित रहनेकी प्रतिज्ञा की। देवताओंने इस प्रतिज्ञासे प्रसन्न होकर उनपर पुष्पवर्षा की, और ऐसी भीषण प्रतिज्ञा करनेके कारण उनको 'भीष्म' कहकर सम्बोधित किया। महाराज शन्तनु अपने पुत्रको पितृभक्तिसे परम सन्तुष्ट हुए। उन्होंने भीष्मको आशीर्वाद दिया—'बेटा! जब तुम चाहोगे, तभी तुम्हारा शरीर छूटेगा। तुम्हारी इच्छाके बिना मृत्यु तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकेगी।'

भीष्मतीने भगवान् परशुरामसे धनुर्वेद सीखा था। जब परशुरामजी काशिराजकी कन्या अम्बाकी प्रार्थना मानकर भीष्मजीके पास आये और उनसे कहने लगे कि 'तुम उस कन्यासे विवाह कर लो तब भीष्मजीने बड़ी नम्रता से कहा- 'गुरुजी ! मैं त्रिलोकीके राज्यके लिये या स्वर्गके सिंहासनके लिये अथवा दोनोंसे भी अधिक महान् पदके लिये भी सत्यको कभी नहीं छोड़ सकता।'

परशुरामजीने भय दिखाया और अन्तमें वे भीष्मसे युद्ध करने लगे। बड़ा ही उग्र संग्राम हुआ। ऋषियोंने भीष्मको समझाना चाहा, पर उन तेजस्वीने कहा- 'भय, दया, धनके लोभ और कामनासे मैं क्षात्रधर्मका त्यागनहीं कर सकता। मैं युद्धमें पीठ नहीं दिखाऊँगा। मेरी प्रतिज्ञा है कि मैं प्रतिपक्षका आघात सहता हुआ पैर पीछे नहीं रहूंगा।' अन्तमें देवताओंके कहने परशुरामजीको ही मानना पड़ा। भीष्मका व्रत अटल रहा।

जब सत्यवतीके दोनों पुत्र पर गये, तब भरतवंशकी रक्षा एवं राज्यके पालनके निमित्त सत्यवतीने भीष्मको सिंहासनपर बैठने तथा सन्तानोत्पादन करनेके लिये कहा। भीष्मने मातासे कहा-'पञ्चभूत चाहे अपना गुण छोड़ दें, सूर्य चाहे तेजोहीन हो जायें, चन्द्रमा चाहे शीतल न रहें, इन्द्रमेंसे बल और धर्मराजमेंसे धर्म चाहे चला जाय पर त्रिलोकीके राज्यके लिये भी मैं अपनी प्रतिज्ञा छोड़ नहीं सकता। माता तुम इस विषयमें मुझसे कुछ मत कहो।'

युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें भीष्मजीने ही पहले कहा- 'तेज, बल, पराक्रम तथा सभी गुणोंमें श्रीकृष्ण ही सर्वश्रेष्ठ हैं और वे ही अग्रपूजा पानेके अधिकारी हैं। जब इस बातसे जलकर शिशुपाल तथा उसके समर्थक उनकी भर्त्सना करने लगे, तब उन्होंने खुलकर घोषणा करते हुए कहा-'हम जानते हैं कि श्रीकृष्ण ही समस्त लोकोंकी उत्पत्ति तथा विनाशके मूल कारण हैं। इन्होंके द्वारा यह सचराचर विश्व रचा गया है। ये हो अव्यक्त प्रकृति हैं, ये ही कर्ता ईश्वर हैं, ये ही समस्त भूतोंसे परे सनातन ब्रह्म हैं। ये ही सबसे बड़े एवं सबके पूज्य हैं। समस्त सद्गुण श्रीकृष्णमें ही प्रतिष्ठित हैं।'

आश्रयदाताकी सहायता करना धर्म है, इसीलिये भीष्मजीने महाभारतके युद्धमें दुर्योधनका पक्ष लिया। वे दुर्योधनको उसके अन्यायोंके लिये सदा धिक्कारते रहते थे युद्ध भी वे दुर्योधनको समझाते रहते थे अवश्य ही वे पूरी शक्तिसे दुर्योधनके पक्षमें लड़ रहे थे पर हृदयसे धर्मपर स्थित पाण्डवोंकी विजय ही उन्हें अभीष्ट थी। उन्होंने स्वयं अपनी मृत्युका उपाय बताया और युधिष्ठिरको अपने बधके लिये आज्ञा दी।

महाभारतके युद्धमें भगवान् श्रीकृष्णने शस्त्र ग्रहण न करनेकी प्रतिज्ञा की थी। दुर्योधनद्वारा उत्तेजित किये जानेपर भीष्मजीने प्रतिज्ञा कर ली कि 'भगवान्‌को शस्त्र ग्रहण करा दूंगा।' दूसरे दिनके युद्धमें भीष्म अर्जुनको अपनी बाण वर्षासे विकल कर दिया। भक्तवत्सल भगवान् अपने भक्त के प्रणको रक्षाके लिये अपनी प्रतिज्ञा भंग करके सिंहनाद करते हुए अर्जुनके रथसे कूद पड़ेऔर हाथमें रथका टूटा पहिया लेकर भीष्म की ओर दौड़े। सेनामें हाहाकार मच गया। लोग चिल्लाने लगे-'भीष्म मारे गये! भीष्म मारे गये।' पृथ्वी काँपने लगी; किन्तु भीष्म देख रहे थे कि श्रीकृष्णचन्द्रका पीताम्बर कन्धे से गिरकर भूमिमें लोटता जा रहा है। उन श्यामसुन्दरके चरण युद्धभूमिमें रक्तसे लथपथ होते दौड़े आ रहे हैं। अलकें उड़ रही हैं। भालपर स्वेद तथा शरीरपर कुछ रक्तकी बूँदें झलमला रही हैं। भृकुटियाँ कठोर किये श्रीकृष्ण हुंकार करते आ रहे हैं। भीष्म मुग्ध हो गये भगवान्की भक्तवत्सलतापर। वे उनका स्वागत करते हुए बोले-

'पुण्डरीकाक्ष ! देवदेव! आओ! आओ! तुमको मेरा नमस्कार पुरुषोत्तम! आज इस युद्धभूमिमें तुम मेरा वध करो। परमात्मन्! श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! तुम्हारे हाथसे मरनेपर अवश्य मेरा कल्याण होगा। आज मैं त्रिलोकीमें सम्मानित हूँ! निष्पाप प्रभो ! इच्छानुसार तुम अपने इस दासपर प्रहार करो!'

अर्जुनने दौड़कर पीछेसे भगवान्‌के चरण पकड़ लिये और बड़ी कठिनाईसे उन्हें रथपर लौटा ला सके। भीष्मजी हृदयमें भगवान्को यह मूर्ति बस गयी। वे उसे अन्ततक नहीं भूल सके। सूरदासजीने भीष्मजीका मनोभाव इस प्रकार प्रकट किया है-

वा पट पीत की फहरान।
कर धरि चक्र चरन की धावनि, नहिं बिसरति वह खान ।। रथ तें उतरि अवनि आतुर है, कच रजकी लपटान ।
मानों सिंह सैल तें निकस्यो, महामत्त गज जान ॥
जिन गुपाल मेरो प्रन राख्यो, मेटि बेद की कान।

सोई सूर सहाय हमारे निकट भए हैं आन ॥ भीष्मजीने अपनेको रणशय्या देनेकी विधि स्वयं बतायी थी। जब शिखण्डीको आगे करके अर्जुन उनपर बाण चलाने लगे, तब भी उन्होंने शिखण्डीपर आपात नहीं किया। पितामह भीष्मका रोम-रोम बाणोंसे विंध गया। रथसे जब वे गिरे तो उनका शरीर उन बाणोंपर ही उठा रह गया। केवल उनका मस्तक लटक रहा था। पितामहने अर्जुनसे कहा- 'वत्स मेरे योग्य तकिया दो!' अर्जुनने तीन बाण उनके मस्तकमें मारकर सिरको ऊपर उठा दिया। दुर्योधनके भेजे चिकित्सक जब वहाँ आये, तब पितामहने उन्हें आदरपूर्वक लौटा दिया। महायुद्ध समाप्त होनेपर जब युधिष्ठिरका अभिषेकहो गया, वे रात्रिमें एक दिन भगवान् श्रीकृष्णके पास | गये। युधिष्ठिरने भगवान्‌को प्रणाम करके कुशल पूछी, पर उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। उन्होंने देखा कि श्रीकृष्णचन्द्र ध्यानस्थ हैं। उनका रोम-रोम पुलकित हो रहा है। युधिष्ठिरने पूछा कि 'प्रभो! भला आप किसका ध्यान कर रहे हैं?' भगवान्ने बताया- 'शरशय्यापर पड़े हुए पुरुषश्रेष्ठ भीष्म मेरा ध्यान कर रहे थे; उन्होंने मेरा स्मरण किया था, अतः मैं भी उनका ध्यान करनेमें लगा था। मैं उनके पास चला गया था।

भगवान् ने फिर कहा-'बुधिष्ठिर वेद एवं धर्मके सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता, नैष्ठिक ब्रह्मचारी पितामह भीष्मके न रहनेपर जगत्के ज्ञानका सूर्य अस्त हो जायगा। अतः वहाँ चलकर तुमको उनसे उपदेश लेना चाहिये।'

युधिष्ठिर श्रीकृष्णचन्द्रको लेकर भाइयोंके साथ जहाँ भीष्मजी शरशय्यापर पड़े थे, वहाँ गये। बड़े-बड़े ब्रह्मवेत्ता ऋषि-मुनि वहाँ पहलेसे उपस्थित थे। श्रीकृष्णचन्द्रने पितामहसे कहा- आप युधिष्ठिरको उपदेश करें। भीष्मजी बताया कि 'मेरे शरीरमें बाणोंकी अत्यधिक पीड़ा है, इससे मन स्थिर नहीं है।' उन्होंने स्पष्ट कहा- आप जगदुरुके सामने मैं उपदेश करूँ, यह साहस मैं नहीं कर सकता।'

भगवान्ने स्नेहपूर्ण वाणीमें कहा-पितामह! आपके शरीरका क्लेश, मूर्च्छा, दाह, ग्लानि, क्षुधा पिपासा, मोह आदि सब अभी नष्ट हो जायँ और आपके अन्तःकरणमें सब प्रकारके ज्ञानका स्फुरण हो। आप जिस विद्याका चिन्तन करेंगे, वह आपके चित्तमें प्रत्यक्ष हो जायगी।' भगवान्ने बताया- 'मैं स्वयं उपदेश न करके आपसे | इसलिये उपदेश करनेको कहता हूँ, जिसमें मेरे भक्तकी कीर्तिका विस्तार हो।' भगवानको कृपासे पितामहकी सारी पीड़ा दूर हो गयी। उनका चित्त स्थिर हो गया। उनके हृदयमें भूत, भविष्य, वर्तमानका समस्त ज्ञान प्रकट हो गया। उन्होंने बड़े उत्साहसे युधिष्ठिरको धर्मके समस्त अङ्गका उपदेश किया।

अन्तमें सूर्यके उत्तरायण होनेपर एक सौ पैंतीस वर्षकी अवस्थामें माघ शुक्ल अष्टमीको सैकड़ों ब्रह्मा ऋषि-मुनियोंके बीचमें शरशय्यापर पड़े हुए पितामहने। अपने सम्मुख खड़े पीताम्बरधारी श्रीकृष्णचन्द्रका दर्शन करते हुए, उनकी स्तुति करते हुए, चित्तको उन परम पुरुषमें एकाग्र करके शरीरका त्याग कर दिया।



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parityajeyan trailokyan raajyan deveshu va punah . yadvaapyadhikametaabhyaan n tu satyan kathanchan ..

- bheeshm (mahaabhaarata) maharshi ke shaapase aath vaonko manushyalokamen janm lena thaa. shreegangaajeene unakee maata hona sveekaar kiyaa. ve mahaaraaj shantanukee patnee huee saat vasuonko to janmate hee unhonne apane jalamen daalakar unake lok bhej diya, par aathaven vasu dyauko shantanujeene rakh liyaa. isee baalakaka naam 'devavrata' huaa. mahaaraaj shantanu daasharaajakee paalita putree satyavateepar mugdh ho gaye; kintu daasharaaj chaahate the ki unakee putreekee santaan ho sinhaasanapar baithaneko adhikaarinee maanee jaay, tab ve mahaaraajako apanee kanya den. mahaaraaj apane jyeshth susheel putr devavrataka svatv chheenana naheen chaahate the aur satyavateeko aasakti bhee unamen thee. ve udaas rahane lage. mantriyonse pitaakee udaaseeka pata lagaakar devavrat daasharaajake paas gaye aur unhonne kahaa- main raajyaasan naheen loongaa.' jab daasharaajane shanka kee ki tum to raajagaddeepar naheen baithoge, par tumhaaree santaan raajyake liye jhagada़ sakatee hai, tab unhonne aajanm avivaahit rahanekee pratijna kee. devataaonne is pratijnaase prasann hokar unapar pushpavarsha kee, aur aisee bheeshan pratijna karaneke kaaran unako 'bheeshma' kahakar sambodhit kiyaa. mahaaraaj shantanu apane putrako pitribhaktise param santusht hue. unhonne bheeshmako aasheervaad diyaa—'betaa! jab tum chaahoge, tabhee tumhaara shareer chhootegaa. tumhaaree ichchhaake bina mrityu tumhaara kuchh bhee bigaada़ naheen sakegee.'

bheeshmateene bhagavaan parashuraamase dhanurved seekha thaa. jab parashuraamajee kaashiraajakee kanya ambaakee praarthana maanakar bheeshmajeeke paas aaye aur unase kahane lage ki 'tum us kanyaase vivaah kar lo tab bheeshmajeene bada़ee namrata se kahaa- 'gurujee ! main trilokeeke raajyake liye ya svargake sinhaasanake liye athava dononse bhee adhik mahaan padake liye bhee satyako kabhee naheen chhoda़ sakataa.'

parashuraamajeene bhay dikhaaya aur antamen ve bheeshmase yuddh karane lage. bada़a hee ugr sangraam huaa. rishiyonne bheeshmako samajhaana chaaha, par un tejasveene kahaa- 'bhay, daya, dhanake lobh aur kaamanaase main kshaatradharmaka tyaaganaheen kar sakataa. main yuddhamen peeth naheen dikhaaoongaa. meree pratijna hai ki main pratipakshaka aaghaat sahata hua pair peechhe naheen rahoongaa.' antamen devataaonke kahane parashuraamajeeko hee maanana pada़aa. bheeshmaka vrat atal rahaa.

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'pundareekaaksh ! devadeva! aao! aao! tumako mera namaskaar purushottama! aaj is yuddhabhoomimen tum mera vadh karo. paramaatman! shreekrishn ! govind ! tumhaare haathase maranepar avashy mera kalyaan hogaa. aaj main trilokeemen sammaanit hoon! nishpaap prabho ! ichchhaanusaar tum apane is daasapar prahaar karo!'

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kar dhari chakr charan kee dhaavani, nahin bisarati vah khaan .. rath ten utari avani aatur hai, kach rajakee lapataan .
maanon sinh sail ten nikasyo, mahaamatt gaj jaan ..
jin gupaal mero pran raakhyo, meti bed kee kaana.

soee soor sahaay hamaare nikat bhae hain aan .. bheeshmajeene apaneko ranashayya denekee vidhi svayan bataayee thee. jab shikhandeeko aage karake arjun unapar baan chalaane lage, tab bhee unhonne shikhandeepar aapaat naheen kiyaa. pitaamah bheeshmaka roma-rom baanonse vindh gayaa. rathase jab ve gire to unaka shareer un baanonpar hee utha rah gayaa. keval unaka mastak latak raha thaa. pitaamahane arjunase kahaa- 'vats mere yogy takiya do!' arjunane teen baan unake mastakamen maarakar sirako oopar utha diyaa. duryodhanake bheje chikitsak jab vahaan aaye, tab pitaamahane unhen aadarapoorvak lauta diyaa. mahaayuddh samaapt honepar jab yudhishthiraka abhishekaho gaya, ve raatrimen ek din bhagavaan shreekrishnake paas | gaye. yudhishthirane bhagavaan‌ko pranaam karake kushal poochhee, par unhen koee uttar naheen milaa. unhonne dekha ki shreekrishnachandr dhyaanasth hain. unaka roma-rom pulakit ho raha hai. yudhishthirane poochha ki 'prabho! bhala aap kisaka dhyaan kar rahe hain?' bhagavaanne bataayaa- 'sharashayyaapar pada़e hue purushashreshth bheeshm mera dhyaan kar rahe the; unhonne mera smaran kiya tha, atah main bhee unaka dhyaan karanemen laga thaa. main unake paas chala gaya thaa.

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bhagavaanne snehapoorn vaaneemen kahaa-pitaamaha! aapake shareeraka klesh, moorchchha, daah, glaani, kshudha pipaasa, moh aadi sab abhee nasht ho jaayan aur aapake antahkaranamen sab prakaarake jnaanaka sphuran ho. aap jis vidyaaka chintan karenge, vah aapake chittamen pratyaksh ho jaayagee.' bhagavaanne bataayaa- 'main svayan upadesh n karake aapase | isaliye upadesh karaneko kahata hoon, jisamen mere bhaktakee keertika vistaar ho.' bhagavaanako kripaase pitaamahakee saaree peeda़a door ho gayee. unaka chitt sthir ho gayaa. unake hridayamen bhoot, bhavishy, vartamaanaka samast jnaan prakat ho gayaa. unhonne bada़e utsaahase yudhishthirako dharmake samast angaka upadesh kiyaa.

antamen sooryake uttaraayan honepar ek sau paintees varshakee avasthaamen maagh shukl ashtameeko saikada़on brahma rishi-muniyonke beechamen sharashayyaapar pada़e hue pitaamahane. apane sammukh khada़e peetaambaradhaaree shreekrishnachandraka darshan karate hue, unakee stuti karate hue, chittako un param purushamen ekaagr karake shareeraka tyaag kar diyaa.

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तेरे दर पे सर झुकाना
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कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
मेरी करुणामयी सरकार पता नहीं क्या दे
क्या दे दे भई, क्या दे दे
श्री राधा हमारी गोरी गोरी, के नवल
यो तो कालो नहीं है मतवारो, जगत उज्य
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
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विहरत संग लाडली बाल, जै जै जै श्री
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
कैसे जीऊं मैं राधा रानी तेरे बिना
मेरा मन ही न लगे श्यामा तेरे बिना
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
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अपनी वाणी में अमृत घोल
अपनी वाणी में अमृत घोल
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
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जब हारे दिल से तू,
इसे भजन सुनाएगा,
पांवा गढ़ सु उत्तरी कालका, संग भेरू ने
आगे आगे कालो खेले, पाछे भेरू गोरो हे ओ
मेरे श्याम ने आना है,
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अरे कागा सब तन खायियो,
मोरा चुन चुन खायियो मांस,
मधुबन चली जाऊंगी बाबा वैध बने सरकारी,
मधुबन चली जाऊंगी कन्हैया वैध बने