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भक्त श्रीरामचरणजी रामसनेही की मार्मिक कथा
भक्त श्रीरामचरणजी रामसनेही की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त श्रीरामचरणजी रामसनेही (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त श्रीरामचरणजी रामसनेही]- भक्तमाल


संवत् 1776 वि0 माघ शुक्ल 14 के दिन ढूंढाड़ | देशके सोडा नामक ग्राममें बीजावर्गीय वैश्य श्रीवकतरामजीकी धर्मपत्नी से आपका जन्म हुआ था। आपका जन्मनाम श्रीरामकृष्णजी था। जब ये इकतीस वर्षके हुए, तब सोते समय इनके चरणोंमें वज्रका चिह्न देखकर एक ब्राह्मण आश्चर्यचकित हो गया और सोचने लगा कि 'ये तो कोई संत हैं। अबतक गुप्त क्यों हैं ?' पर भगवान्की ऐसी ही मर्जी थी। उसी समय श्रीरामकृष्णजीको स्वप्र हुआ कि मैं नदीमें बहा जा रहा हूँ और एक पहुँचे हुए महात्मा हाथ पकड़कर मुझे बचा रहे हैं। बस, अब क्या था, उन्हीं स्वप्रमें देखे हुए महात्माको ढूँढ़नेके लिये ये घरसे निकल पड़े। रास्तेमें वैराग्यके बड़े-बड़े विचार मनमें आये। संसारके दुःख और अनित्यताकी छाप इनके मनपरजम गयी। मेवाड़के दाँतड़ा ग्राममें इन्हें वही महात्मा मिल गये, उन संतका नाम श्रीकृष्णरामजी महाराज था। और उन्होंने इन्हें योग्य अधिकारी समझकर भगवत्-तत्त्वका उपदेश किया और इनका नाम श्रीरामचरणजी रख दिया।

ये सं0 1808 वि0 के भाद्रपदमें गूदड़वेश धारण करके गुफामें घुसे और पच्चीस वर्षतक तपस्या करते रहे। तत्पश्चात् इन्होंने छत्तीस हजारसे अधिक साखियोंकी रचना की। वे अनुभवसे ओत-प्रोत हैं इनके 225 शिष्य थे। ये मुमुक्षुजनोंको निर्गुण राम- महामन्त्रका उपदेश करते थे। शाहपुरा-नरेश आपको बड़ी श्रद्धासे शाहपुरा ले आये थे और शाहपुरामें ही संवत् 1855 वि0 वैशाख कृष्ण 5 को इन्होंने अपना पाञ्चभौतिक शरीर त्यागा। ये रामस्नेही सम्प्रदायके मूलाचार्य माने जाते हैं।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt shreeraamacharanajee raamasanehee]- Bhaktmaal


sanvat 1776 vi0 maagh shukl 14 ke din dhoondhaada़ | deshake soda naamak graamamen beejaavargeey vaishy shreevakataraamajeekee dharmapatnee se aapaka janm hua thaa. aapaka janmanaam shreeraamakrishnajee thaa. jab ye ikatees varshake hue, tab sote samay inake charanonmen vajraka chihn dekhakar ek braahman aashcharyachakit ho gaya aur sochane laga ki 'ye to koee sant hain. abatak gupt kyon hain ?' par bhagavaankee aisee hee marjee thee. usee samay shreeraamakrishnajeeko svapr hua ki main nadeemen baha ja raha hoon aur ek pahunche hue mahaatma haath pakada़kar mujhe bacha rahe hain. bas, ab kya tha, unheen svapramen dekhe hue mahaatmaako dhoondha़neke liye ye gharase nikal pada़e. raastemen vairaagyake bada़e-bada़e vichaar manamen aaye. sansaarake duhkh aur anityataakee chhaap inake manaparajam gayee. mevaada़ke daantada़a graamamen inhen vahee mahaatma mil gaye, un santaka naam shreekrishnaraamajee mahaaraaj thaa. aur unhonne inhen yogy adhikaaree samajhakar bhagavat-tattvaka upadesh kiya aur inaka naam shreeraamacharanajee rakh diyaa.

ye san0 1808 vi0 ke bhaadrapadamen goodada़vesh dhaaran karake guphaamen ghuse aur pachchees varshatak tapasya karate rahe. tatpashchaat inhonne chhattees hajaarase adhik saakhiyonkee rachana kee. ve anubhavase ota-prot hain inake 225 shishy the. ye mumukshujanonko nirgun raama- mahaamantraka upadesh karate the. shaahapuraa-naresh aapako bada़ee shraddhaase shaahapura le aaye the aur shaahapuraamen hee sanvat 1855 vi0 vaishaakh krishn 5 ko inhonne apana paanchabhautik shareer tyaagaa. ye raamasnehee sampradaayake moolaachaary maane jaate hain.

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